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तिसन्धानपरत्व- प्रवृद्धराग - पराङ्गनागमनादर वामलोचनाभावाभिष्वङ्गतादिः स्त्रीवेदस्य।स्तोकक्रोधजैह्मनिवृत्त्यनुत्सिक्तत्वाऽलोभमावाऽङ्गनासमवायाल्परागत्व-स्वदारसंतोषेाविशेषोपरमस्नानगन्धमाल्याभरणानादरादिः पुंवेदनीयस्य। प्रचुरक्रोधमानमायालोभपरिणाम - गुह्येन्द्रियव्यपरोपण-स्त्रीपुंसानङ्गव्यसनित्व शीलवतगुणधारिप्रव्रज्याश्रितप्रम (मैथन पराङ्गनावस्कनन्दनरागतीवानाचारादिनपुंसकवेदनीयस्य। उत्प्रहास, बहुत जोर से हसना, दीनतापूर्वक हँसी, कामविकार पूर्वक हँसी, बहुप्रलाप तथा हरएक की हँसी मजाक करना हास्यवेदनीय के आस्रव के कारण हैं । विचित्र क्रीड़ा, दूसरे के चित्तको आकर्षण करना, बहुपीड़ा, देशादिके प्रति अनुत्सुकता, प्रीति उत्पन्न करना रतिवेदनीय के आस्रव के कारण हैं। रति विनाश, पापशील व्यक्तियों की संगति, अकुशल क्रिया को प्रोत्साहन देना आदि अरतिवेदनीय के आसव के कारण हैं। स्वशोक, प्रीति के लिए परका शोक करना, दूसरों को दुःख उत्पन्न करना, शोक से व्याप्त का अभिनन्दन आदि शोकवेदनीय के आस्रव के कारण हैं । स्वयं भयभीत रहना, दूसरों को भय उत्पन्न करना, निर्दयता, त्रास आदि भयवेदनीय के आस्रव के कारण हैं । धर्मात्मा चतुर्वर्ण विशिष्ट वर्ग कुल आदि की क्रिया और आचार में तत्पर पुरुषों सेग्लानि करना, दूसरे की बदनामी करने का स्वभाव आदि जुगुप्सावेदनीय के आंसव के कारण हैं । अत्यन्त क्रोध के परिणाम, अतिमान, अत्यन्त ईर्ष्या, मिथ्याभाषण, छल कपट, तीव्रराग, परांगनागमन, स्त्रीभावों में रुचि आदि स्त्रीवेद के आस्रव के कारण हैं। मन्दक्रोध, कुटिलता न होना, अभिमान न होना, निलोभ भाव, अल्पराग, स्वदारसन्तोष ईर्ष्या-रहित भाव, स्नान, गन्ध, माला, आभरण आदि के प्रति आदर न होना आदि पुंवेद के आसव के कारण हैं। प्रचुर क्रोध मान माया लोभ, गुप्त इन्द्रियों का विनाश, स्त्री पुरुषों में अनङ्गक्रीड़ा का व्यसन, शीलव्रत गुणधारी और दीक्षाधारी स्त्री पुरुषों को बिचकाना, परस्त्री पर आक्रमण, तीव्र राग, अनाचार आदि नपुंसकवेद के आस्त्रव के कारण हैं।
(रा.वा. 6/14) आयु
एति भवधारणं प्रति इत्यायुः।जे पोग्गला मिच्छत्तादिकारणेहि णिरयादिमवधारणसत्ति परिणदाजीवणिविट्ठाते आउअसण्णिदा होति।
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