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________________ केवली, श्रुत, संघ, धर्म और देव इनका अवर्णवाद दर्शनमोहनीय कर्म का आस्रव है। (त.सू. 6/13) मार्गसंदूषणं चैव तथैवोन्मार्गदेशनम्। सत्य मोक्षमार्ग को दूषित ठहराना और असत्य मोक्षमार्ग को सच्चा बताना ये भी दर्शनमोह कर्म के आसव के कारण हैं। (त.सा. 4/28) कषायवेदनीय के बन्धयोग्य परिणाम स्वपरकषायोत्पादनं तपस्विजनवृत्तदूषणं संक्लिष्टलिङ्गवतधारणादिः कषायवेदनीयस्यास्त्रवः। स्वयं कषाय करना, दूसरों में कषाय उत्पन्न करना, तपस्वीजनों के चारित्र में दूषण लगाना, संक्लेशको पैदा करने वाले लिंग (वेष) और व्रत को धारण करना आदि कषायवेदनीय के आसवं हैं। (स.सि. 6/14) जगदनुग्रहतन्त्रशीलवतभावितात्मतपस्विजनगर्हण-धर्मविध्वसंनतदन्तरायकरणशीलगुणदेशसंयतविरतिप्रच्यावनमधुमद्यमांसविरतचित्तविभ्रमापादन- वृत्तसंदूषण-संक्लिष्टलिंगव्रतधारणस्वपरकषायोत्पादनादिलक्षणः कषायवेदनीयस्यासवः। जगत उपकारी शीलवती तपस्वियों की निन्दा, धर्मध्वंस, धर्ममें अन्तराय करना, किसी को शीलगुण देशसंयम और सकलसंयम से च्युत करना, मद्य मांस आदि से विरक्त जीवों को उसमें बिचकाना, चारित्रदूषण, संक्लेशोत्पादक व्रत और वेषों का धारण, स्व और पर में कषायों का उत्पादन आदि कषायवेदनीय कर्म के आस्रव के कारण हैं। (रा.वा. 6/14) अकषायवेदनीय के बन्धयोग्य परिणाम उत्पहासादीनाभिहासित्व - कन्दर्पोपहसनबहुप्रलापोपहासशीलता हास्यवेदनीयस्य। विचित्रपरक्रीडन- परसौचित्यावर्जन - बहुविधपीड़ाभाव देशाधनौत्सुक्यप्रीतिसंजननादिः रतिवेदनीयस्य। परारतिप्रादुर्भावनरतिविनाशन - पापशीलसंसर्गताऽकुशलक्रिया-प्रोत्साहनादिः अरतिवेदनीयस्य । स्वशोकाऽमोदशोचनपरदुःखाविष्करण शोकप्लुताभिनन्दनादिः शोकवेदनीयस्य । स्वयं भयपरिणामपरभयोत्पादन - निर्दयत्व- त्रासनादिर्भयवेदनीयस्य । सद्धर्मापन्नचतुर्वर्ण विशिष्टवर्गकुलक्रियाचारप-वणजुगुप्सा परिवादशीलत्वादिर्जुगुप्सावेदनीयस्य। प्रकृष्टकोधपरिणामातिमानितेाव्यापारालीकाभिधायिता (30) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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