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________________ परिभोगान्तराय कर्म जस्स कम्मस्स उदएण परिभोगस्स विग्धं होदितं परिभोगंतराइयं । जिस कर्म के उदय से परिभोग में विघ्न होता है, वह परिभोगान्तराय कर्म (ध 6/78) भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्य उपभोगस्तस्य विघ्नहेतुरुपभोगान्तरायम्। एक बार भोगकर पुनः भोगने योग्य उपभोग कहलाता है, उसके विघ्नका कारण उपभोगान्तराय है। (क.प्र./41) वीर्यान्तराय कर्म जस्स का मस्स उदएणवीरियस्स विग्धं होदितं वीरियंतराइयं णाम। जिस कर्म के उदयसे वीर्य में विघ्न होता है, वह वीर्यान्तरायकर्म है। (ध. 6/78) वीर्यशक्तिःसामर्थ्य तस्य विघ्नहेतुर्वीर्यान्तरायम्। शक्ति या सामर्थ्य वीर्य है, उसके विघ्न का कारण वीर्यान्तरायहै। (क.प्र./41) बहुरि जाके उदय तें अपनी शक्ति प्रकट करने को चाहैं, परन्तु शक्ति प्रकट न होइ, सो वीर्यातराय है। . (गो.का.स.च/33) दानादि अंतराय कर्मों के लक्षण रत्नत्रयवद्भ्यः स्ववित्तपरित्यागोदान रत्नत्रयसाधन दित्सावा। अभिलषितार्थप्राप्तिाभः। सकृद्भुज्यत् इति भोगःगन्ध-ताम्बूल पुष्पाहारादिः। परित्यज्यपुनर्मुज्यतइति परिभोगःस्त्री-वस्त्राभरणादिःतत्रभरणानि स्त्रीणां चतुर्दश। तद्यया तिरीट - मुकुटचूडामणि - हारार्द्धहार - कटिकंठसूत्र मुक्तावलि-कटकांगर्दा-गुलीयक-कुंडलगवेय-प्रालंबाः। पुरुषस्यखड्ग-क्षुरिकाभ्यांसह षोडश।वीर्य शक्तिरित्यर्थः। एतेषां विघ्नकृदन्तरायः। रत्नत्रय से युक्त जीवों के लिये अपने वित्त का त्याग करने या रत्नत्रय के योग्य साधनों के प्रदान करने की इच्छा का नाम दान है। अभिलषित अर्थ की प्राप्ति होना लाभ है। जो एक बार भोगा जाय वह भोग है। यथा -गन्ध, पान, पुष्प और आहार आदि छोड़कर जो पुनः भोगा जाता है वह उपभोग है। यथा - स्त्री वस्त्र और आभरण आदि । इनमें स्त्रियों के आभरण चौदह होते हैं। यथा - तिरीट, मुकुट, चूडामणि, हार, अर्धहार, कटिसूत्र, कण्ठसूत्र, मुक्तावलि, कटक, अंगद, अंगूठी, कुण्डल, ग्रेवेय और प्रालम्ब । पुरुष के (111) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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