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________________ यदुदयेन निन्दिते दरिद्रे भ्रष्टे इत्यादिकुले जीवस्य जन्म भवति तन्नीचैर्गोत्रम् । जिसके उदय से लोकनिन्द्य, दरिद्र, भ्रष्ट आदि कुल में जीव का जन्म हो उसे नीच गोत्र कहते हैं । (त. वृ. श्रु. 8 / 12 ) उच्च नीच गोत्रके बन्धयोग्य परिणाम कुलरूवाणाबलसुदलाभिस्सरयत्थमदितवादीहिं । अप्पाणमुण्णमें तो नीचागोदं कुणदि कम्मं ॥ माया करेदि णीचगोदं कुल, रूप, आज्ञा, शरीरबल, शास्त्रज्ञान, लाभ, ऐश्वर्य, तप और अन्यपदार्थों से अपने को ऊंचा समझने वाला मनुष्य नीचगोत्र का बन्ध कर लेता है । माया से नीच गोत्र की प्राप्ति होती है। (भ.आ./ 1375,1386) परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसद्गुणो च्छादनोद्भावने च नीचैर्गोत्रस्य तद्विपर्ययो नीचैर्वृत्त्यनुत्सेकौ चोत्तरस्य । (त.सू. 6 / 26 ) कः पुनरसौ विपर्ययः । आत्मनिन्दा, परप्रशंसा, सद्गुणोद्भावनमसद्गुणोच्छादनं च । गुणोत्कृष्टेषु विनयेनावनतिनचैर्वृत्तिः । विज्ञाननादिभिरुत्कृष्टस्यापि सतस्तत्कृतमदविरहोऽनहंकारतानुत्सेकः । तान्येतान्युत्तरस्योच्चैर्गोत्रस्यासवकारणानि भवन्ति । परनिन्दा, आत्मप्रशंसा, दूसरों के होते हुए गुणों को भी ढक देना और अपने नहीं होने वाले गुणों को भी प्रगट करना ये नीचगोत्र के आस्रव के कारण हैं । उनका विपर्यय अर्थात् आत्मनिन्दा पर प्रशंसा, अपने होते हुए गुणों को ढकना और दूसरे के नहीं होने वाले भी गुणों को प्रगट करना, उत्कृष्ट गुणवालों के प्रति नम्रवृत्ति, और ज्ञानादिमें श्रेष्ठ होते हुए भी उसका अभिमान न करना, ये उच्चगोत्र के आसव के कारण हैं । (स.सि. 6/26) परपरिवा जातिकुलबलरूपश्रुताज्ञैश्वर्यतपोमदपरावज्ञानोत्प्रहसन J... दशीलता धार्मिकजननिन्दात्मोत्कर्षाऽन्ययशोविलोपाऽसत्कीर्त्यत्पादनगुरुपरिभव- तदुद्घट्टन- दोषख्यापनंविहेडन - स्थानावमान - भर्त्सनगुणावसादन-अञ्जलिस्तुत्यभिवादनाभ्युत्थानाऽकरण तीर्थकराधिक्षेपादिः । जाति, बल, कुल, रूप, श्रुत, आज्ञा, ऐश्वर्य और तपका मद करना, परकी अवज्ञा, दूसरे की हँसी करना, परनिन्दाका स्वभाव, धार्मिकजन परिहास, आत्मोत्कर्ष, परयशका विलोप, मिथ्याकीर्ति अर्जन करना, गुरुजनों का Jain Education International (108) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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