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________________ जिसके उदय से अन्य जीवों के अनुग्रह या उपघात के अयोग्य सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति हो वह सूक्ष्म नामकर्म है। (रा.वा. 8/11) आधारानपेक्षितशरीराःजीवाःसूक्ष्माभवन्ति।जलस्थलरूपाधारेण तेषां शरीरगतिप्रतिघातो नास्ति। अत्यन्तसूक्ष्मपरिणामत्वात्ते जीवाः सूक्ष्मा भवन्ति। आधारकी अपेक्षा रहित जिनका शरीर है वे सूक्ष्म जीव हैं। जिनकी गतिका जल, स्थल आधारों के द्वारा प्रतिघात नहीं होता है। और अत्यन्त सूक्ष्म परिणमन के कारण वे जीव सूक्ष्म कहे हैं। (गो.जी. /184) णयजेसिं पडिखलणं पुढ़वी तोएहिं अग्निवाएहिं। ते जाण सुहुम-काया इयरा पुण थूलकायाय ॥ जिन जीवों का पृथ्वी से, जलसे, आग से और वायु से प्रतिघात नहीं होता, उन्हें सूक्ष्मकायिक जीव जानो। (का.अ./127) विशेष- यदि सूक्ष्मनामकर्म न हो, तो सूक्ष्म जीवों का अभाव हो जाय । किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, अपने प्रतिपक्षी के अभाव में बादरकायिक जीवों के भी अभाव का प्रसंग प्राप्त होता : (ध. 6/62) पर्यास नामकर्म जस्स कम्मस्सुदएणजीवा पन्नत्ता होतित कम्मं पज्जत्तं णामं जिस कर्म के उदय से जीव पर्याप्त होते हैं, वह पर्याप्त नामकर्म है। (ध 13/365) पर्याप्तनाम स्वस्वपर्याप्तीनां पूर्णतां करोति। पर्याप्तनामकर्म स्व-स्व पर्याप्तियों की पूर्णता को करता है। (क.प्र./33) यदुदयादाहारादिपर्याप्तिनिवृत्तिः तत्पर्याप्तिनाम। जिनके उदय से आहार आदि पर्याप्तियों की रचना होती है वह पर्याप्ति नामकर्म है। (स.सि. 8/11) विशेष - यदि पर्याप्तनामकर्मनहो, तोसभी जीव अपर्याप्त ही होजावेगे। किन्तु वैसा है नहीं, क्योंकि, पर्याप्त जीवका भी सद्भाव पाया जाता है। (ध. 6/62) (93) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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