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जिस कर्म के उदय से जीव स्थावरपने को प्राप्त होता है, उस कर्म की 'स्थावर' यह संज्ञा है ।
( ध 6/61)
II
जाणदि पस्सदि भुंजदि सेवदि पासिंदिएण एक्केण । कुणदि य तस्सामित्तं थावरू एइंदिओ तेण स्थावर जीव एक स्पर्शन इन्द्रिय के द्वारा ही जानता है, देखता है, खाता है, सेवन करता है और उसका स्वामीपना करता है, इसलिए उसे एकेन्द्रिय स्थावर जीव कहा है । (ध. 1/239) पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावरनाम पृथिव्याद्येकेन्द्रियाणां चलनोद्वेजनादिरहितस्थावरकायं करोति ।
पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति, स्थावर नाम कर्म पृथ्वी आदि एकेन्द्रियों के चलन, उद्वेजन आदि रहित स्थावरकायको करता है ।
(क. प्र. / 32 )
यन्निमित्त एकेन्द्रियेषु प्रादुर्भावस्तत्स्थावरनाम । जिसके निमित्त से केन्द्रियों में उत्पत्ति होती है वह स्थावर नामकर्म है । ( स. सि. 8 / 11 ) विशेष - यदि स्थावरनामकर्म न हो, तो स्थावर जीवों का अभाव हो जायगा । किन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि, स्थावर जीवों का सद्भाव पाया जाता है । (ध. 6 / 61)
बादर नामकर्म
जस्स कम्मस्स उदएण जीवो बादरेसु उप्पज्जदि तस्स कम्मस्स बादरमिदि सण्णा ।
जिस कर्म के उदय से जीव बादरकाय वालों में उत्पन्न होता है, उस कर्म की 'बादर' यह संज्ञा है । (ET6/61)
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बादरः स्थूलः सप्रतिघातः कायो येषां ते बादरकायाः ।
जिन जीवों का शरीर बादर, स्थूल अर्थात् प्रतिघात सहित होता है उन्हें बादरकाय कहते हैं । ( ध 1 / 276)
बादरनाम परैर्बाध्यमानं स्थूलशरीरं करोति ।
बादर नाम कर्म दूसरों के द्वारा बाधा दिये जाने योग्य स्थूल शरीर को
करता है ।
(क. प्र. / 33 )
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