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________________ समस्त प्रदेशों का आकाश में गमन पाया जाता है। (ध. 6/61) विहायोगति के भेद जंतं विहायगइणामकम्मं तं दुविहं, पसत्थविहायगदी अप्पसत्थ विहायगदी चेदि। जो विहायोगति नामकर्म है, वह दो प्रकार का है - प्रशस्तविहायोगति और अप्रशस्त विहायोगति। (ध 6/76) प्रशस्त विहायोगति जस्स कम्मस्स उदएणजीवाणंसीह-कुंजर-वसहाणंव पसत्था गई होज्ज, तं पसत्थ विहायगदी णाम। जिस कर्म के उदय से जीवों के सिंह, कुंजर, और वृषभ (बैल) के समान प्रशस्त गति होवे, वह प्रशस्त विहायोगति नामकर्म है। (ध 6/77) तत्र प्रशस्तविहायोगतिनाम मनोसंगमनं करोति। प्रशस्त विहायोगति नाम कर्म मनोज्ञ गमन करता है। (क.प्र./32) वरवृषभद्विरदादिप्रशस्तगतिकारणं प्रशस्तविहायोगतिनाम। श्रेष्ठ हाथी, बैल आदि की प्रशस्त गति में कारण प्रशस्त विहायोगति नामकर्म होता है। (रा.वा. 8/11) गजवृषभहंसमयूरादिवत् प्रशस्तविहायोगतिनाम। गज, वृषभ, हंस, मयूर आदि के गमन की तरह सुन्दर गति को प्रशस्तविहायोगति कहते हैं। (त.वृ. श्रु. 8/11) अप्रशस्त विहायोगति जस्स कम्मस्स उदएणखरोट्ट-सियालणं व अप्पसत्थागई होज्ज, सा अप्पसत्थविहायगदी णाम। जिस कर्म के उदय से गर्दभ, ऊँट और सियालों के समान अप्रशस्त गति होवे, यह अप्रशस्त विहायोगति नामकर्म है। (ध 6/77) अप्रशस्तविहायोगतिरप्रशस्तगमनं करोति। अप्रशस्त विहायोगति अप्रशस्त-अमनोज्ञ गमन करता है। (क.प्र./31) उष्ट्रखराद्यप्रशस्तगतिनिमित्तमप्रशस्तविहायोगतिनामचेति। ऊँट, गधा आदि की अप्रशस्त गति में कारण अप्रशस्त विहायोगति नामकर्म (89) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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