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________________ अग्निपात, जल निमज्जन आदि के द्वारा आत्मघात करना भी उपघात है। (त.वृ. श्रु. 8/11) बहुरि 'उपेत्य घातः उपघातः” अपने घात का नाम है, सो जाके उदय तें अपने अंगनि तै अपना घात होइ बड़े सींग वा लम्बे स्तन वा मोटाउदर ऐसे अङ्ग होंई सो उपघात नाम है। (गो.का.स.च/33) विशेष - शंका- जीव को पीड़ा करने वाले अवयव कौन-कौन हैं ? समाधान - महाशृंग (बारह सिंगाके समान बड़े सींग), लम्बे स्तन, विशाल तोंदवाला पेट आदि जीव को पीड़ा करने वाले अवयव हैं। यदि उपघात नामकर्मजीवके न हो, तो बात, पित्त और कफसे दूषित शरीरसे जीवके पीड़ा नहीं होना चाहिए। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, वैसा पाया नहीं जाता है। शंका - जीव के दुःख उत्पन्न करने में तो असाता-वेदनीयकर्मका व्यापार होता है, (फिर यहाँ उपघातकर्मको जीव-पीड़ाका कारण कैसे बताया जा रहा है)? समाधान -जीवके दुःख उत्पन्न करनेमें असातावेदनीयकर्मका व्यापार रहा आवे, किन्तु उपघातकर्म भी उस असातावेदनीयका सहकारी कारण होता है, क्योकि, उसके उदयके निमित्तसे दुःखकर पुद्गल द्रव्यका सम्पादन (समागम) होता है। (ध. 6/59) परघातनामकर्म परेषांघातः परघातः।जस्स कम्मस्स उदएण परघादहेदूसरीरे पोग्गला णिप्फजंतितकम्मं परघादणामातंजहा-सप्पदाढासु विसं, विच्छियपुंछे परदुःखहेउपोग्गलोवचओ,सीह वग्घच्छवलादिसुणहदंता सिंगिवच्छणाहीपत्तूरादओचपरघादुप्पायया। पर जीवों के घात को परघात कहते हैं। जिस कर्म के उदय से शरीर में पर को घात करने के लिये कारणभूत पुद्गल निष्पन्न होते हैं, वह परघात नामकर्म कहलाता है। जैसे साँप की दाढ़ों में विष, विच्छू की पूंछ में पर दुख के कारणभूत पुद्गलों का संचय,सिंह व्याघ्र और छल्ल (शबल चीता) आदि में (तीक्ष्ण) नख और दंत, तथा सिंगी, वत्स्यनाभि और धत्तूरा आदि विषैले वृक्ष पर को दुःख उत्पन्न करने वाले हैं। (ध 6/59) परघातनाम परवाधाकारकं सर्पदंष्ट्रङ्गादिशरीरावयव करोति। (85) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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