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है।
पासादीणिजीवस्स ढोएदितं उवघादं णाम। जो कर्म अवयवों को जीव की पीडा का कारण बना देता है, अथवा जीव पीड़ा के कारण स्वरूप विष, खड्ग, पाश आदि द्रव्यों को जीव के लिये ढोता है, अर्थात् लाकर संयुक्त करता है, वह उपघात नामकर्म कहलाता है।
(ध 6/59) जस्स कम्मस्सुदएणसरीरमप्पणो चेव पीडं करेदितं कम्ममुवघादंणाम। जिस कर्म के उदय से शरीर अपने को ही पीड़ाकारी होता है, वह उपघात नामकर्म है।
(ध 13/364) उपघातनाम स्वबाधाकारकं तुन्दादिशरीरावयवं करोति। उपघात नाम कर्म अपने को बाधाकारक तोंद आदि शरीरावयवों को करता
(क.प्र./30) यस्योदयात्स्वयंकृतोद्बन्धनमरुप्रपतनादिनिमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम। जिसके उदयसे स्वयंकृत उद्बन्धन और मरुस्थल में गिरना आदि निमित्तक उपघात होता है वह उपघात नामकर्म है।
(स.सि. 8/11) यस्योदयात्स्वयं कृतोद्बन्धनमरुत्पतनादि-निमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम। जिस कर्म के उदय से अपने द्वारा किये गये बन्धन, वायु, पर्वत से गिरना इत्यादि निमित्त से स्वयं का घात होता है वह उपघात नाम कर्म है।
(त.वृ.भा.8/11) स्वकृतो बन्धनाद्यैः स्यादुपघातोयतस्तु तत् । उपघातं समुद्दिष्टं । जिसके उदय से अपने ही बन्धन आदि से अपना ही घात होता है वह उपघात नामकर्म कहा गया है।
(ह.पु. 58/263) यदुदयेन स्वयमेव गले पाशं बवा वृक्षादौ अवलम्ब्य उद्वेगान्मरणं करोति प्राणापाननिरोधं कृत्वा मियते इत्येवमादिभिरनेकप्रकारैः शस्त्रघातभृगुपाताग्निझम्पापातजलनिमज्जनविषभक्षणादिभिरात्मघातं करोति तदुपघातनाम। जिसके उदय से जीव स्वयं ही गले में पाश बांधकर, वृक्ष आदि पर टंग कर मर जाता है वह उपघात नामकर्म है | शस्त्रघात, भृगुपात, विषभक्षण,
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