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संदृष्टि नं. 57
मिश्र आस्रव 43 मिश्र में 43 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 12 अविरति, योग 10 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 2 - औदारिक, वैक्रियिक), अप्रत्याख्यानादि कषाय 12, नोकषाय 9। गुणस्थान एक मात्र मिश्र आदि होता है।
गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति |
आस्रव अभाव
3.मिश्र
आस्रव 43[12 अक्रिति,योग 10 (मनोयोग4, वचनयोग 4,काययोग 2 - औदारिक, वैक्रियिक), अप्रत्याख्यानादि कषाय 12. नोक्षाय]
सण्णिस्स होति सयला वेगुव्वाहारदुगमसण्णिस्स। चदुमणमादितिवयणं अणिंदियं णत्थि पणदाला ।।5।।
संज्ञिनः भवन्ति सकला वैक्रियिककाहरदिकसंज्ञिनः। चतुर्मनांसि आदित्रिवचनानि अनिन्द्रिय न संति पंचचत्वारिंशत्॥
___ अर्थ - संज्ञी मार्गणा में संज्ञी में सभी सत्तावन आस्रव होते हैं। असंज्ञी में चार मनोयोग, तीन वचनयोग (सत्य, असत्य, उभय), वैक्रियिकद्विक, आहारकद्विक तथा मन अविरति से रहित पैंतालीस आम्रव होते हैं।
संदृष्टि नं. 58
संज्ञी आम्रव 57 संज्ञी में 57 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 15 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 7), कषाय 16, नोकषाय 9। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि बारह होते हैं। इसकी संदृष्टि रचना गुणस्थान के समान जानना
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15 मनोयोग, वचन
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