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संदृष्टि नं. 48
पीत-पद्मलेश्या आस्रव 57 पीत-पद्मलेश्या में 57 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 15 (मनोयोग 4 वचनयोग 4, काययोग 7), कषाय 16, नोकषाय 9। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि सात होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव
आस्रव अभाव
1.मिथ्यात्व |5[5 मिथ्यात्व]
| 54 [गुणस्थानक्त
औदारिकमिश्रकाययोग
3 [गुणस्थानवत् 2 + औदारिकमिश्र काययोग]
2.सासादन
गुणस्थानवत
49 गुणरथानवत्50औदारिकमिश्रकाययोग]
8 [गुणस्थानवत् 7+औदारिकमिश्र काययोग]
3.मिश्र
43 [गुणस्थानव] 46 [गुणस्थानवत] 37 [गुणस्थानक्त
14 [गुणस्थानव 11 [गुणस्थानक्त
4.अक्स्ति कापोतलेश्यावत्] 5.देशविस्त 15 [गुणस्थान 6.प्रात्तसंयम 2[गुणस्थानवत]
20 [गुणस्थानव]
24 गुणस्थान
33 [गुणस्थानवता
7.अप्रमत्त
22[गुणस्थानवता
35 [गुणस्थानव]
सुहलेस्सतिये भव्वे सव्वेऽभव्वे ण होदि हारदुगं। पणवण्णुवसमसम्मे ते मिच्छोरालमिस्सअणरहिदा ।।57||
शुभलेश्यात्रिके भव्ये सर्वे अभव्ये न भवात्याहारदिकं । पंचपंचाशदुपशमसम्यक्त्वे ते मिथ्यात्वौदारिकमिश्रानरहिताः॥
अर्थ - शुभ तीन लेश्याओं अर्थात् पीत, पद्म और शुक्ल लेश्याओं में तथा भव्यों में सभी सत्तावन आस्रव होते हैं। अभव्य जीवों के आहारकद्विक को छोड़कर पचपन आम्रव होते हैं। औपशमिक सम्यग्दर्शन
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