SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मणपज्जे संढित्थीवज्जिदसगणोकसाय संजलणं। आदिमणवजोगजुदा पच्चयवीसं मुणेयव्वा ।।48|| मनःपर्यये षंढ़स्त्रीवर्जितसप्तनोकषायाः संज्वलनाः । आदिमनवयोगयुक्ताः प्रत्ययविंशतिः ज्ञातव्या ॥ अर्थ - मन:पर्यय ज्ञान में स्त्रीवेद, नपुंसकवेद को छोड़कर शेष सात नोकषाय, संज्वलन चतुष्क, औदारिक काययोग, मनोयोग चार और वचनयोग चार ये बीस आस्रव होते हैं। ओरालं तंमिस्सं कम्मइयं सच्चअणुभयाणं च। मणवयणाण चउक्के केवलणाणे सगं जाणे ॥49।। औदारिकं तन्मिनं कार्मणं सत्यानुभयानां च । मनोवचनानां चतुष्कं केवलज्ञाने सप्त जानीहि ॥ अर्थ - केवलीज्ञान में सत्य, अनुभय मनोयोग तथा वचनयोग औदारिक, औदारिकमिश्र काययोग व कार्मण काययोग ये सात आम्रव होते हैं। संदृष्टि नं. 35 मन:पर्ययज्ञान आस्रव 20 मन:पर्ययज्ञान में 20 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - मनोयोग 4, वचनयोग4, औदारिक काययोग, संज्वलन क्रोध आदि 4 कषाय, हास्य आदि 6, नोकषाय और पुवेद । गुणस्थान प्रमत्तसंयत आदि 7 होते हैं। गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव । आस्रव अभाव 6.प्रात्तविस्त 20[उपर्युक्त 17.अप्रमत्त विस्त 20 [उपर्युत [59] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002706
Book TitleAsrava Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy