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गुणस्थान आसव व्युच्छित्ति
4. अविस्त
5. देशविस्त
6. प्रमत्तविरत
8 [ अप्रत्याख्यान
क्रोध आदि 4, त्रस अविरति, वैक्रियिक,
वैक्रियिक मिश्र, कार्मण
काययोग]
15 [ गुणस्थानवत्]
0
7. अप्रमत्त विस्त
8. अपूर्वकरण 6 [गुणस्थानवत् ]
0
9. अनिवृत्ति- 1 [नपुंसकवेद ]
करण भाग 1
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आस्रव
| 43 [उपर्युक्त 41+2 (वैक्रियिकमिश्र, कार्मणकाययोग)]
35 [गुणस्थानवत् 37-2 (पुंवेद, [स्त्रीवेद )]
20 [संज्वलन 4, हास्य, रति, अरति,
शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद, मनोयोग 4, वचनयोग 4, औदारिक काययोग ]
20 [उपर्युक्त ]
20 [उपर्युक्त ]
14 [उपर्युक्त 20- हास्य आदि 6 नोकषाय ]
आस्रव अभाव
10 [5 मिथ्यात्व
4 अनंतानुबंधी, औदारिकमिश्र काययोग]
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18 [ उपर्युक्त 10+8
( अप्रत्याख्यान क्रोध आदि 4, त्रस अविरति, वैक्रियिकद्विक, कार्मणकाययोग)]
33 [5] मिथ्यात्व अविरति 12, अनंतानुबंधी आदि 12 कषाय, औदारिकमिश्र, वैकिकिद्विक और कार्मणकाययोग]
33 [उपर्युक्त ]
33 [उपर्युक्त ]
तेसिं अवणिय वेगुव्वियमिस्स अविरदे हु णिक्खेवे । माणादिबारसहीण पणदाला ||45||
कोहचउक्के
39 [ उपर्युक्त 33 + 6,
काय ]
तेषां अपनीय वैक्रियिकमिश्रं अविरते हि निक्षिपेत् । मानादिव्दादशहीनाः
क्रोधचतुष्के
पंचचत्वारिंशत् ॥
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