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________________ संदृष्टि नं. 26 आहारक - आहारकमिश्रकाययोग आम्रव 12 आहारक - आहारकमिश्रकाययोग में 12 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - संज्वलन कषाय 4, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुंवेद, स्वकीय योग । गुणस्थान एक मात्र छटवां होता है। गुणस्थान आम्रव व्युच्छित्ति आस्रव अभाव 6.प्रमत्तसंयम 12 [संज्वलन कषाय 4, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुवेद, स्वकीय योग] आस्रव - - संदृष्टि नं. 27 कार्मणकाययोग आस्रव 43 कार्मणकाययोग में 43 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - मिथ्यात्व 5, अविरति 12, कार्मणकाययोग, कषाय 16, नोकषाय 9। गुणस्थान 1, 2, 4, 13 ये चार होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव आस्रव अभाव 1.मिथ्यात्व |5[मिथ्यात्व 5] 43 [मिथ्यात्व 5,अविरति 12, कार्मणकाययोग, कषाय 16, नोकषाय 9] 15 [अनन्तानुबन्धी4,38 [उपर्युत43-5 5 [मिथ्यात्व 5] स्त्रीवेद] मिथ्यात्व] 14.अविस्त | 32[अप्रत्याख्यान आदि 33 [उपर्युक्त 38-5 | 10 [मिथ्यात्व, | 12 कषाय, हास्यादि6 (अनन्तानुबन्धी 4, स्त्रीवेद)] अनन्तानुबन्धी4, स्त्रीवेद नोकषाय, वेद, नपुंसक्वेद, अविरति12] | 13.सयोग 1 [कर्मणकाययोग] 1 [कर्मणकाययोग] 42 [उपर्युत 10 + अविस्तगुण केवली - स्थान केव्युच्छिन 32 आसव 2.सासादन - [48] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002706
Book TitleAsrava Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size4 MB
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