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अर्थ - सासादन गुणस्थानवी जीव, नरक गति में नहीं जाता है इसलिए उसके सासादन गुणस्थान में कार्मण काययोग और वैक्रियिक मिश्र काययोग नहीं होता है। चतुर्थ गुणस्थान में कार्मण काययोग और वैक्रियिक मिश्र काययोग पाया जाता है।
सक्करपहुदिसु एवं अविरदठाणे ण होइ कम्मइयं । वेगुव्वियमिस्सो वि य तेसिं मिच्छेव वोच्छेदो ।।28।।
शर्कराप्रभृतिषु एवं, अविरतस्थाने न भवति कार्मणं । वैक्रियिकमिश्रमपि च तयोः मिथ्यात्वे एवं व्युच्छेदः । अर्थ - इसी प्रकार द्वितीयादि पृथ्वियों में चतुर्थ गुणस्थान में कार्मण काययोग और वैक्रियिक मिश्र काययोग नहीं होता है। इन दोनों योगों की मिथ्यात्व गुणस्थान में ही व्युच्छित्ति हो जाती है।
संदृष्टि नं. 2
प्रथम नरक आस्रव 51 प्रथम नरक में 51 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - मिथ्यात्व 5, अविरति 12, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 - वैक्रियिक, वैक्रियिक मिश्र और कार्मण), कषाय 23 (कषाय 16 , नोकषाय 7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय,जुगुप्सा, नपुंसकवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि चार होते हैं।
आस्रव अभाव
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गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव 1 मिथ्यात्व |5[मिथ्यात्व5] 151 [मिथ्यात्व,अविरति 12,
योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग3-वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्रऔर कार्मण), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7-हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद)]
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