________________
आसव
संदृष्टि नं. 1 (अ) गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति
आस्रव अभाव 1. मिथ्यात्व 5 [5 मिथ्यात्व-155[5 मिथ्यात्व (एकान्त, विपरीत, विनय, | 2 [आहारक और आहारक
(एकान्त, विपरीत, संशय और अज्ञान), 12 अविरति | मिश्रकाययोग विनय, संशय और (षट्काय- पृथ्विकाय, जलकाय, अज्ञान)] अग्निकाय,वायुकाय, वनस्पतिकाय और
त्रसकाय, पाँच इन्द्रियाँ- स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु, श्रोत्र तथा मन), 13 योग (मनोयोग, 4- सत्य, असत्य, उभय, अनुभय, वचनयोग 4-सत्य, असत्य, उभय, अनुभय, काययोग 5-औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण) कषाय 25 (कषाय 16 - अनन्तानुबन्धी-क्रोध, मान,माया,लोभ, अप्रत्याख्यान-क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यान-क्रोध, मान, माया, लोभ, |संज्वलन -क्रोध, मान, माया, लोभ, नोकषाय - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद,द, नपुंसकवेद)]
2. सासादन| 4 [अनन्तानुबन्धी 50 [12 अविरति, मनोयोग 4, 7 [मिथ्यात्व 5 -
- क्रोध, मान, वचनयोग 4, काययोग 5 - . (एकान्त,विपरीत, विनय, माया, लोभ] (औदारिक, औदारिकमिश्र,वैक्रियिक, संशय और अज्ञान), वैक्रियिकमिश्र, और कार्मण) कषाय 25] आहारक और आहारक
मिश्र काययोग 3. मिश्र
43 [अविरति - 12 (षट्काय - | 14 [मिथ्यात्व 5पृथ्विकाय, जलकाय, अग्निकाय, I (एकान्त, विपरीत, वायुकाय, वनस्पतिकाय और | विनय, संशय और त्रसकाय, पाँच इन्द्रियाँ - स्पर्शन, | अज्ञान),आहारक रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र तथा मन) | आहारकमिश्र, औदारिक
[11]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org