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________________ श्रीसिद्धाचलमण्डन-श्रीऋषभदेवस्वामिने नमः॥ श्रीगिरनारमण्डन-श्रीनेमिनाथाय नमः॥ श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः॥ श्रीमहावीरस्वामिने नमः॥ श्रीगौतमस्वामिने नमः॥ आमुखम् इस बात का मुझे बड़ा हर्ष है कि श्री नेमिनाथ भगवान् के मोक्षकल्याणक से पवित्र गिरनार पर्वत के शिखर से यह आमुख लिख रहा हूँ। तीन वर्ष पहले जब हमारा जयपुर जाने का हुआ तब प्राकृत भारती अकादमी के निदेशक डॉ. विनयसागरजी ने वल्लभ-भारती का प्रथम खण्ड हमको दिया था। नाकोड़ाजी के चातुर्मास में जब वह पढ़ा तब जिनवल्लभसूरि की विद्वत्ता से मैं अत्यन्त प्रभावित हुआ और द्वितीय खण्ड पढने की इच्छा हुई। मैंने डॉ० विनयसागरजी को लिखा, किन्तु उत्तर में उन्होंने लिखा - आर्थिक कारणवशात् वह अद्यावधि मुद्रित हुआ ही नहीं। जब मिले तब मैंने कहाजिनवल्लभगणि का जो कुछ साहित्य हो सभी प्रकाशित कर दो।आर्थिक सहायता की चिन्ता मत करो, सब हो जायेगा। उसके बाद उन्होंने जिनवल्लभसूरि ग्रन्थावलि के नाम से वल्लभभारती का द्वितीय खण्ड कुछ मास पूर्व ही प्रकाशित कर दिया और जिनवल्लभगणि विरचित धर्मशिक्षा प्रकरण कि जिनपालोपाध्याय विरचित टीका के साथ कम्प्युटर से एण्ट्री कर मेरे पास प्रूफ भेजा। मैंने देखा कि उसमें अशुद्धियों से पूर्ण था, जिसके आधार से पाण्डुलिपि की गई थी वह जैसलमेर भण्डार की फोटो कॉपी बहुत झांखी तथा अस्पष्ट थी। अत्यधिक परिश्रम से उस फोटो कॉपी के आधार से एवं अन्यान्य सामग्री के आधार से हमने संशोधन (Correction) किया और वर्तमान सम्पादन पद्धति के अनुसार उसका सम्पादन किया जो आज आप के सामने उपस्थित हो रहा है, किन्तु चालू विहार में ग्रन्थ सामग्री न होने से मूल स्थान सूचित नहीं कर सका। जिनके मूलस्थान प्राप्त हैं वे [ ] ऐसे कोष्ठक में उद्धृत पाठ के पीछे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002705
Book TitleDharmshiksha Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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