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________________ प्रस्तावना -X टीका* क्र० ग्रंथनाम टीका नाम टीकाकार रचना समय (वंदिय नंदिय०) ३३. भावारिवारण स्तोत्र टीका जयसागरोपाध्याय १५वीं शता० (भावारिवारण) टीका * मेरुसुन्दरोपाध्याय १५वीं शता० क्षेमसुन्दरोपाध्याय १५वीं शता० टीका* चारित्रवर्धन १५वीं शता० टीका* मतिसागर १५वीं शता० अवचूरि* अज्ञात कर्तृक बालावबोध * मेरुसुन्दरोपाध्याय पादपूर्तिस्तोत्र। पद्मराजगणि सं० १६५९ ३४. पञ्चकल्याणक स्तोत्र (प्रीतिप्रसन्न०) * ३५. कल्याणक स्तव (पुरन्दर पुर०)* ३६. सर्वजिन स्तोत्र (प्रीतिप्रसन्न०)* ३७. पार्श्वजिन स्तोत्र (नमस्यद्गीर्वाण०)* ३८. पार्श्वजिनस्तोत्र (पायात्पार्श्व०)* ३९. पार्श्वजिन स्तोत्र (देवाधीश०)* ४०. पार्श्वजिन स्तोत्र (समुद्यन्तो०)* ४१. पार्श्वजिन स्तोत्र (विनयविनमद्)* ४२. पार्श्वजिन स्तोत्र चित्रकाव्यात्मक (शक्तिशूलेषु०)* ४३. पार्श्वजिन स्तोत्र चकाष्टक (चक्रे यस्य नति:)* ४४. सरस्वती स्तोत्र (सरभसलसद्). ४५. नवकार स्तव (किं किं कप्पतरु०). भारतीय साहित्य में यह असाधारण घटना है कि किसी कवि/लेखक की रचना पर उनके स्वर्गवास के एक वर्ष के पश्चात् से ही वि०सं० ११७० से १८०० तक बृहद्गच्छीय, चन्द्रकुलीय, चन्द्रगच्छीय, राजगच्छीय, तपागच्छीय, खरतरगच्छीय, आप्त एवं धुरंधर आचार्यों/विद्वानों ने जिनवल्लभ के १४ ग्रंथों पर ७३ टीकाओं की रचना की हैं। अज्ञात कर्तृक १४ संख्या कम करने पर भी मुनिचन्द्रसूरि, . चिह्नान्तर्गत ग्रंथ विविध संस्थाओं से प्रकाशित हैं। प्रकाशन संस्थाओं के नाम के लिए वल्लभ-भारती प्रथम खण्ड देखें। चिह्नान्तर्गत ग्रंथ अद्यावधि अप्रकाशित हैं। * चिह्नान्तर्गत मूल ग्रंथ प्रकाशित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002705
Book TitleDharmshiksha Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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