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________________ आमुखम - III श्री जिनवल्लभगणि विरचित दूसरे अन्य ग्रन्थ भी अप्रकाशित टीकाओं के साथ प्रकाशित किया जाए ऐसा मेरा डॉ० विनयसागरजी से अनुरोध है। मैं तो चाहता हूँ कि प्रकाशित टीका ग्रन्थ भी वर्तमान सम्पादन पद्धति के अनुरूप ढंग से पुनः प्रकाशित किये जाएं । बस इतनी विज्ञप्ति के साथ यह आमुख भगवान् नेमिनाथ की छाया में लिखकर समाप्त करता हूँ और यह भगवान् नेमिनाथ के कर-कमलो में समर्पित कर धन्यता का अनुभव करता हूँ। फाल्गुन शुक्ल १० रविवार पूज्यपादाचार्य - श्रीविजयसिद्धिसूरीश्वरपट्टालङ्कारविक्रम संवत् २०६१ पूज्यपादाचार्य - श्रीविजयमेघसूरीश्वरशिष्यरत्नगिरनार पर्वत शिखर पूज्यपादसद्गुरुदेवपिताश्री मुनिराजजूनागढ़ - गुजरात राज्य भुवनविजयजी महाराज का अन्तेवासी २०-०३-२००५ ई.स. मुनि जम्बूविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002705
Book TitleDharmshiksha Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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