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अर्थ - द्रव्य में द्रव्य का, गुण में गुण का, पर्याय में पर्याय का, द्रव्य में गुण और पर्याय का गुण में द्रव्य और पर्याय का और पर्याय में द्रव्य और गुण का उपचार करना चाहिए । यह उपचार बन्ध से संयुक्त अवस्था में तथा ज्ञानी ज्ञेय आदि के साथ सम्बन्ध होने पर किया जाता है ।
विशेषार्थ - उपर्युक्त विषय का विवेचन आगे गाथाओं में किया गया है।
विजातीय द्रव्य में विजातीय द्रव्य का आरोपण करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय एइंदियादिदेहा णिच्चत्ता जेवि पोग्गले काये । ते जो भणेइ जीवो ववहारो सो विजातीओ ||53| एकेन्द्रियादिदेहा निश्चिता येsपि पौद्गले काये । ये भाणिता जीवा व्यवहारः स विजातीयः ||53||
अर्थ - पौद्गलिक काय में जो एकेन्द्रिय आदि के शरीर बनते हैं उन्हें जो जीव कहता है वह विजातीय असद्भूत व्यवहार नय है ।
विशेषार्थ शरीर पौद्गलिक है - पुद्गल परमाणुओं से बना है । उसमें जीव का निवास होने से तथा जीव के साथ ही उसका जन्म होने से लोग जीव कहते हैं, किन्तु यथार्थ में तो शरीर जीव नहीं है, जीव से भिन्न द्रव्य है । जीव द्रव्य चेतन ज्ञानवान् है और शरीर जड़ है, रूप रस गन्ध स्पर्श गुणवाला है । अतः विजातीय द्रव्य शरीर में विजातीय द्रव्य जीव का आरोप करनेवाला नय विजातीय असद्भूत व्यवहार नय है ।
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विजातीय गुण में विजातीय गुण को आरोपण करने वाला असद्भूत व्यवहार नय मुत्तं इह मइणाणं मुत्तिमदव्वेण जण्णियं जह्मा । जइहु मुत्तं णाणं ता कह खलियं हि मुत्तेण ||54||
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