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________________ मूल नयों के भेद दो चेव मूलिमणया भणिया दव्वत्थपज्जयत्थगया । अण्णं असंखसंखा ते तब्भेया मुणेयव्वा ||11|| द्वौ चैव मूलनयौ भणितौ द्रव्यार्थपर्यायार्थगतौ । अन्येऽसंख्यसंख्यास्ते तद्भेदा ज्ञातव्याः ।।11।। अर्थ - द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ये दो ही मूल नय कहे गये है । अन्य असंख्यात संख्या को लिये हुए उन दोनों के ही भेद जानने चाहिए । विशेषार्थ - प्रत्येक वस्तु द्रव्यपर्यायात्मक है । द्रव्य को विषय करने वाला द्रव्यार्थिक नय कहलाता है और पर्याय को विषय करने वाला है पर्यायार्थिक नय कहलाता है । इन्हीं दोनों मूल नयों में शेष सब नयों का अन्तर्भाव हो जाता है। जितने भी वचन मार्ग हैं, उतने ही नय है अतः नयों की संख्या असंख्यात है । वे असंख्यात नय द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयों ही भेद है क्योंकि उन सबका विषय या तो द्रव्य होता है या पर्याय । अन्य प्रकार से नयों के भेद नैगम संगह ववहार तहय रिउसुत्त सद्द अभिरूढा । एवंभूयो वविह णयावि तह उवणया तिण्णि ॥12॥ नैगमः संग्रहः व्यवहारस्तथा चर्जुसूत्रः शब्दः समभिरूढः । एवंभूतो नवविधा नया अपि तथोपनयास्त्रयः ।।12।। अर्थ नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरुढ़ और एवंभूत ( इन सात नयों में द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक को मिलाने से) नौ नय हैं तथा तीन उपनय है । — Jain Education International 8 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002704
Book TitleLaghu Nayachakrama
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherPannalal Jain Granthamala
Publication Year2002
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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