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एकान्त सेवस्तुसिद्धि नहीं तच्चं विस्सवियप्पं एयवियप्पेण साहए जो हु । तस्स ण सिज्झइ वत्थु किह एयंतं पसोहेदि ।।5।। तत्त्वं विश्वविकल्पं एकविकल्पेन साधयेद्यो हि । तस्य न सिद्धयति वस्तु कथमेकान्तं प्रसाधयेत् ।।5।।
अर्थ - तत्त्व तो नाना विकल्प रुप है उसे जो एक विकल्प के द्वारा सिद्ध करता है उसको वस्तु की सिद्धि नहीं होती। तब वह कैसे एकांत का साधन कर सकता है।
विशेषार्थ - तत्त्व नाना धर्मात्मक है अर्थात् युगपत् उसमें अनेक धर्म पाये जाते है । जो धर्म है वे ही विकल्प कहे जाते हैं। इसलिए गाथा में यह कहा गया है कि तत्त्व नाना विकल्प रूप हैं नाना धर्मात्मक होने के कारण जो वस्तु को एक विकल्प अथवा एक धर्म रूप सिद्ध करता है उसे वस्तु के स्वरुप की सिद्धि किसी प्रकार नहीं हो सकती है। नय को एकान्त भी कहा जाता है क्योंकि किसी विवक्षित धर्म की मुख्यतः से कथन करता है। जो नाना धर्मात्मक पदार्थ को स्वीकार नहीं करता है, वह एकान्त रुप सम्यक्नय का भी साधन नहीं कर सकता।
द्रव्यज्ञान मेंनय की उपयोगिता धम्मविहीणो सोक्खं तणाछेयं जलेण जह रहिदो। तह इह वंछइ मूढो णयरहिओ दव्वणिच्छित्ती ।।6।। धर्मविहीनः सौख्यं तृष्णाच्छेदं जलेन यथा रहितः । तथेह वाञ्छति मूढो नयरहितो द्रव्यनिश्चितिम् ।।6।।
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