SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित = अर्थ :- वर्द्धमान भगवान के तीर्थ के 100 वर्ष व्यतीत होने के पश्चात् (उपयुक्त पाँच श्रुत केवलियों के बाद) कोई भी श्रुत केवली नहीं हुआ। विसाहणामो पढमो पोटिलो जयउखत्तिओ णागो। सिद्धत्थो धिदसेणो विजओ णवमो य बुद्धिल्लो 173|| गंगो सुधम्मुणामो एयारसमुणि जयम्मि विक्खाया। तेसीदिसयं वासं कालो दसपुव्वधर णेया 174|| वर्ष 183॥ अर्थ :- प्रथम विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिषण, विजय, बुद्धिल, गंगदेव, और सुधर्म ये ग्यारह आचार्य दस पूर्वधारी हुए हैं। परम्परा से प्राप्त इन सबका काल एक सौ तेरासी वर्ष प्रमाण है। णरवत्तो जयपालो पुंडरिउ धुदसेणु कुंसणामा य। एयारसअंगधरा वासं वीसहियविण्णिसया 175।। वर्ष 220॥ अर्थ :- नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन और कंस ये पाँच आचार्य वीर जिनेन्द्र के तीर्थ में ग्यारह अंग के धारी हुए। इन सब के काल का प्रमाण दो सौ बीस वर्ष है। % C38] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002703
Book TitleShruta Skandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2002
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, canon, & Agam
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy