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________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित अर्थ :- उपर्युक्त पाँच प्रकार की चूलिकाओं के पदों का जोड़ दस करोड़ उन्नचास लाख छयालीस हजार पद है, उन सभी पाँच प्रकार की चूलिकाओं को नमस्कार करता हूँ । पंचप्रकारचूलिका कथिता ॥ छ ॥ इस प्रकार पाँच प्रकार की चूलिकायें कहीं । पणमामि जिणं वीरं जीवादीप्पायवयधुवाणं च । भणियव्वं कोडिपयं उप्पायपुव्वं णमंसामि ॥38॥ 10000000 अर्थ :- वीर जिन को नमस्कार करता हूँ पश्चात् जो श्रुत ज्ञान एक करोड़ पदों द्वारा जीव, पुद्गल आदि द्रव्य के उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य का वर्णन करता है, वह उत्पाद पूर्व है, उसे मैं नमस्कार करता हूँ । विशेषार्थ - जिसमें पुद्गल, काल और जीव आदिकों के जब जहाँ पर और जिस प्रकार से पर्याय रूप से उत्पादों का वर्णन किया जाता है वह उत्पादपूर्व कहलाता है । छाणवदी लक्खपयं अत्थो तह अंग्गिभूसुययरं । अग्गायणीयणामं भावविसुद्धिं णमंसामि ||39|| 9600000 अर्थ :जो श्रुत ज्ञान छयानवें लाख पदों के द्वारा अंगों के अग्र अर्थात् मुख्य पदार्थों का ( तथा स्वसमय का ) वर्णन करता है, उस Jain Education International For Private & Personal Use Only [19] www.jainelibrary.org
SR No.002703
Book TitleShruta Skandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2002
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, canon, & Agam
File Size3 MB
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