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ब्रह्महेमचंद्रविरचितचन्द्रबिम्ब में प्रच्छाद्य-प्रच्छादक विधान अर्थात् राहु द्वारा होने वाले चन्द्र के आवरण की विधि और वहां उत्पन्न होने का कारण इस सबकी प्ररूपणा की जाती है। .
सूरस्स य परिवारं आउगईचारगइसुखेत्तादी। सहसतियं पणलक्खं पयसंखा सूरपण्णत्ती ।।24||
503000 अर्थ :- जो परिकर्म पाँच लाख तीन हजार पदों के द्वारा सूर्य के परिवार आयु, गति, परिभ्रमण क्षेत्र, सुख आदि का वर्णन करता है, उसे सूर्यप्रज्ञप्ति नाम का परिकर्म जानना चाहिए।
विशेषार्थ - सूर्य प्रज्ञप्ति में सूर्य बिम्ब उसके मार्ग, परिवार और आयु का प्रमाण, उसकी प्रभा की वृद्धि एवं ह्रास का कारण, सूर्य संबंधी दिन, मास, वर्ष, युग और अयन के निकालने की विधि तथा राहु व सूर्य बिम्ब की प्रच्छाद्य-प्रच्छादकविधि, उसकी गति विशेष, ग्रह छायाकाल और राशि के उदय का विधान इस सबका निरूपण किया जाता है।
जंबू जोयणलक्खो कुलसेलसुखित्तभोयभूमादी। पणवग्गतियतिसुण्णं पय जंबूदीवपण्णत्ती ।।25।।
325000 अर्थ :- जो परिकर्म एक लाख योजनप्रमाण जम्बूद्वीप के कुलाचल, सुक्षेत्र (भरतादि क्षेत्र) तथा भोगभूमि का तीन लाख पच्चीस हजार पदों के द्वारा वर्णन करता है, उसे जम्बूद्वीप नाम का परिकर्म जानना चाहिए।
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