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किण्णं
- क्यों
किणो
क्यों, किसलिए
ल२
एकबार
सया
=
सदा
= फिर
असइ/असइं/] असई
=
बार-बार/अनेकबार
पुण-पुण
= बार-बार/फिर-फिर
मुहु/मुहं
बार-बार
एयहुत्तं
=
एक बार
(iii)
सुहं (2/1) = सुखपूर्वक दुहं (2/1) = दुखःपूर्वक णेहेण (3/1) __= स्नेहपूर्वक सव्वायरेण(3/1) = पूर्ण आदरपूर्वक
वाक्य-प्रयोग
(i) १. सो उत्तरओ आगओ। ___ - वह उत्तर से आया।
२. इमाणि फलाणि पुह/पिहं करहि। = इन फलों को अलग करो। ३. ईसी/ईसिं/ईसि धम्मं कुणेह, = (आप) थोड़ा-थोड़ा धर्म करें,
जओ परभवो सफलो भविस्सइ। जिससे परलोक सफल हो जायेगा। ४. तुमं मणयं कजं करहि, अहं सेसं - तुम थोड़ा कार्य करो, मैं शेष कजं करिस्सामि।
कार्य करूँगा। ५. मइ तस्स किंचि फलाणि दिण्णाइं। = मेरे द्वारा उसको थोड़े (कुछ) फल
दिये गये।
प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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