________________
1.
2.
सो, तुमं च उट्ठह ( वह और तुम उठते हो।)
तो
जब भिन्न-भिन्न पुरुषों के दो या दो से अधिक कर्त्ता अथवा से जुड़े हों, क्रिया का पुरुष और वचन निकटतम पद के अनुसार होगा। जैसे
(i)
(11)
द्वितीया विभक्ति: कर्मकारक
I
जिस व्यक्ति या वस्तु पर किसी क्रिया का प्रभाव पड़ता है, वह उस क्रिया का कर्म कहलाता है, जैसे- माया कहं सुणइ / सुणदि आदि (माता कथा को सुनती है।) यहाँ सुनना क्रिया का प्रभाव कथा पर समाप्त होता है । इसलिए 'कहा' कर्मकारक हुआ, उसमें द्वितीया विभक्ति रखी गई है। यहाँ यह समझना चाहिए कि कर्मवाच्य को छोड़कर सभी जगह कर्म द्वितीया विभक्ति में रखा जाता है, जैसे बताया गया है कि कर्मवाच्य में कर्म प्रथमा विभक्ति में रखा जाता है, जैसे- मायाए / मायाइ / मायाअ कहा सुणिज्जइ / सुणी अइ / आदि
(ii)
द्विकर्मक क्रियाओं के योग में मुख्य कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है और गौण कर्म में अपादान, अधिकरण, सम्प्रदान, सम्बन्ध आदि विभक्तियों के होने पर भी द्वितीया विभक्ति होती है ।
(i)
(iii)
(iv)
सो, अम्हे वा कज्जं करमो ( वह अथवा हम कार्य करते हैं ।) अम्हे, सो वा कज्जं करइ (हम अथवा वह कार्य करता है ।)
( 30 )
(v)
—
वह गाय से दूध दुहता है - सो गाविं दुद्धं दुहइ/दुहए/आदि (अपादान 5/1 की विभक्ति के स्थान पर)
वह वृक्ष के फलों को इकट्ठा करता है सो रुक्खं फलाई/ फलाणि / आदि चुणइ / चुणए / आदि (सम्बन्ध 6 / 1 की विभक्ति के स्थान पर)
Jain Education International
1
गुरु शिष्य के लिए धर्म का उपदेश देता है गुरु सिस्सं धम्मं उवदिसइ / उवदिसए/आदि (सम्प्रदान 4 / 1 के स्थान पर) वह राजा से धन माँगता है सो नरिंदं धणं मग्गइ / मग्गए / आदि ( अपादान 5/1 के स्थान पर)
वह अग्नि से धान पकाता है - सो अग्गिं धण्णं पचइ / पचए / आदि (करण 3 / 1 के स्थान पर)
प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित- स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org