SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैसे - तिण्णि लोया तिलोया, = 3. बहुव्वीहि समास ( बहुब्रीहि समास ) जब समास में आये हुए दो या अधिक शब्द किसी अन्य शब्द के विशेषण बन जाते हैं तो उसे बहुब्रीहि समास कहा जाता है। इस समास में प्रयुक्त शब्द प्रधान नहीं होते हैं, परन्तु उनसे पृथक् अन्य कोई शब्द ही प्रधान होता है, इसलिए इस समास को 'अन्य पदार्थ प्रधान समास" भी कहते हैं । इस समास के दो भेद है : (i) समान विभक्ति वाले शब्द (प्रथमान्त शब्द) - इसे समानाधिकरण बहुव्रीहि समास भी कहते है । (ii) भिन्न विभक्ति वाले शब्द ( एक शब्द प्रथमान्त और दूसरा षष्ठी या सप्तमी में हो) । इसे व्यधिकरण बहुव्रीहि समास भी कहते है I इस समास का विग्रह करते समय 'ज', 'जा' की विभिन्न विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है ( द्वितीया से सप्तमी तक ) किन्तु समास में आये हुए शब्द प्रथमान्त ही होते है । चउरो दिसाओ = चउदिसा (i) समान विभक्तिवाले शब्दों (प्रथमान्त शब्दों) के उदाहरण क. आरुढो वाणरो जं (2/1) सो आरुढवाणरो (रुक्खो) (जिस पर बन्दर चढ़ा हुआ है वह ) ख. जिआणि इंदियाणि जेण (3/1 ) सो (जिसके द्वारा इन्द्रियाँ जीत ली गई है, वह) 1 = = Jain Education International जिअइंदियो जिइंदियो ( मुणी ) । ग. जिओ कामो जेण (3/1) सो= जिअकामो ( महादेवो) (जिसके द्वारा काम जीत लिया गया है, वह) घ. चत्तारि मुहाणि जस्स (6/1 ) सो = चउम्मुहो (बंभो ) (जिसके चार मुख है, वह ) च. एगो दंतो जस्स (6/1) सो = एगदंतो (गणेसो) (जिसके एक दाँत है, वह) प्राकृतमार्गोपदेशिका द्वारा पं. बेचरदासजी, पृष्ठ 106 > प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित- स्त्रीप्रत्यय-अव्यय For Private & Personal Use Only (19) www.jainelibrary.org
SR No.002701
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy