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4) लोप-विधान सन्धि : (हेम – 1/10) (क) स्वर के बाद स्वर रहने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। जैसे
नर + ईसर = नरीसर अथवा नरेसर (नर का स्वामी) महा + इसि = महिसि अथवा महेसि (बड़ा इन्द्र) सासण + उदय = सासणोदय अथवा सासणुदय (शासन का लाभ)
महा + ऊसव = महूसव अथवा महोसव (महा उत्सव) (ख) ए, ओ से पहले अ, आ का लोप हो जाता है। [पिशल, पारा 153 (पृ. 251)]
जल + ओह = जलोह (जल का भंडार)
णव + एला = णवेला (इलायची का नया पेड़)
वण + ओली = वणोली (वन की श्रेणी)
माला + ओहड = मालोहड (माला फेंकी हुई) (ग) (i) पूर्व पद के पश्चात् अ का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिन्ह (5)
लिखा जाता है, जैसे -
का+ अवत्था = काऽवत्था (क्या अवस्था) (प्रा. गद्य-पद्य सौरभ, पाठ 7, गा. 61) (ii) पूर्वपद के पश्चात् आ का लोप दिखाने के लिए दो अवग्रह चिन्ह भी (55) भी लिखे जाते हैं, जैसे -
ना + आलसेण = नाऽऽलसेण (आलस्य के बिना)
5) पदों की द्विरुक्ति में सन्धि-विधान : (हेम - 3/1)
जहाँ पदों की द्विरुक्ति हुई हो, वहाँ दो पदों के बीच में 'म्' विकल्प से आ
जाता है। जैसे - (क) एक्क + एक्कं = एक्क + म् + एक्कं = एक्कमेक्कं अथवा एक्केक्कं (हरेक) . (ख) एक्क + एक्केण = एक्क + म् + एक्केण-एक्कमेक्केण अथवा एक्कक्केण (हर एक से)
प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (3)
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