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स्वर्गीय डॉ. हीरालाल जैन
को सादर समर्पित
जिन्होंने भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर
जैनसाहित्य-परम्परा के प्राकृत भाषा के ग्रन्थ षट्खण्डागम
एवं अपभ्रंश भाषा
के अनेक विस्मृत व अप्रकाशित ग्रन्थों का
सम्पादन कर
नवजीवन प्रदान किया।
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