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________________ कथा-काव्य का प्रमुख पात्र करकण्डु है। उसका चरित्र शक्तिशाली और सौन्दर्य से अनुप्राणित है। मातृभक्ति और विनय-सम्पन्नता इस चरित्र की अतिरिक्त विशेषता है। इस काव्य में शृंगार और वीर रस की प्रधानता है। 10 संधियों के इस प्रबन्ध काव्य में तीन-चौथाई भाग में करकण्डु की मुख्य कथा है और शेष चौथाई भाग में 9 अवान्तर कथाएँ हैं। ये अवान्तर कथाएँ करकण्डु को नीति की शिक्षा देने के बहाने कही गई हैं । मुनि कनकामर ने भाषा में तत्सम, तद्भव तथा देशज शब्दों के साथ-साथ लोकप्रिय तथा सरल लोकोक्तियों का प्रयोग किया है। "युद्धवर्णन में भाषा ओजगुण-प्रधान है व शृंगार-वर्णन में माधुर्य गुण से अनुप्राणित है । कनकामर ने भाषा को भावानुकूल बनाने के लिए ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग किया है।''67 काव्य में अनेक छन्दों का प्रयोग हुआ है । कवि ने शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों ही प्रकार के अलंकारों को काव्य में स्थान दिया है। डॉ. त्रिलोकीनाथ प्रेमी के अनुसार - "करकण्डचरिउ के सम्पूर्ण कथानक में प्राय: 50 से अधिक कथानक-रूढ़ियों का प्रयोग हुआ है। इन कथानक-रूढ़ियों के प्रयोग से मुनि कनकामर के 'करकंडचरिउ' में उसके कथा-संगठन, वस्तु-निरूपण, मौलिक प्रसंगोद्भावना, शिल्प एवं प्रयोजनसिद्धि आदि में जो कलात्मक-सौन्दर्य और काव्य का औदात्य उभरकर आया है वह अनूठा और अन्यतम है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि किस कथानक-रूढ़ि* का कहाँ, कब और कैसे प्रयोग होना है, इस कला में वह पारंगत है, निष्णात है। तभी इतनी अधिक रूढ़ियों का प्रयोग वह सफलता के साथ कर सका है।''69 हेमचन्द्र (12वीं शती) - अपभ्रंश के क्षेत्र में आचार्य हेमचन्द्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है अपभ्रंश भाषा के व्याकरण की रचना। 'सिद्धहेम शब्दानुशासन' के आठवें अध्याय के चतुर्थ पाद में अपभ्रंश व्याकरण के सूत्र रचित हैं । “सूत्रों में नियमों के उदाहरण के रूप में जो अपभ्रंश के दोहे दिए गए हैं वे आज अपभ्रंश की अमूल्य निधि हैं। इनके चयन और संकलन में हेमचन्द्राचार्य की तलस्पर्शी काव्य-मर्मज्ञता, सारग्राहिणी प्रतिभा और सहृदयता * "लोककथा में रोचकता की सृष्टि के लिए प्रयुक्त हुए विविध कला-तन्तु पुनः पुनः प्रयोग में आने से रूढ़ हो जाते हैं, तब उन्हें कथानक-रूढ़ि या अभिप्राय कहा जाता है।''68 अपभ्रंश : उसके कवि और काव्य - 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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