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________________ अट्ठासी रणवासी/एक्कूणणव णवइ/राउ एक्करराव बारणउइ तिरगवई चउरणवह पंचरणबई छारणवइ/सण्णवइ /छण्णवइ सत्ताणवई अट्ठाणवइ गवणवई = अठासी = नवासी = नब्बे = इक्यानवे = बानवे = तिरानवे = चौरानवे = पंचानवे = छियानवे = सत्तानवे = अट्ठानवे = निन्नानवे = सो = हजार = लाख = करोड़ सय सहस/सहास लक्ख कोडि अन्य संख्याएँ व प्रयोग लक्खवत्तीसट्ठारह = बत्तीस लाख अठारह । (2.17 प.च.) दस सय = एक हजार । (2.1 प.च.) ति-सहासेहि-सत्त-सयाहिएहि तेहत्तरि-ऊसासेहिँ = तीन हजार सात सौ तेहत्तर ___ उच्छ्वास । (50.7 प.च.) सय-पंच सवाय-धणु-प्पमाणु = साढ़े पांच सौ धनुषप्रमाण । (4.2 प.च.) चउदह-सयई-च करूणाई = चार कम चौदह सौ। (11.4 प.च.) धीसद्ध-जीह __= दस जीभ । (13.7 प.च.) उपर्युक्त सभी शब्द निश्चित संख्यावाची गणना-बोधक विशेषण हैं । इनके लिंग, वचन और विभक्ति को निम्न प्रकार समझा जाना चाहिए(i) संख्यावाची 'एक्क' शब्द के रूप केवल एकवचन पुल्लिग में पुल्लिग 'सव्व' 40 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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