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________________ 3. रेहइ सूर-विम्बु उग्गन्तउ । (23.12 प.च.) -उगता हुआ सूर्य बिम्ब शोभता है । 4. एक्कमेक्क कोक्कन्तई रणे हक्कन्तई उभय-वलइ-अभिट्टई। (4.7 प.च.) -एक दूसरे को युद्ध में ललकारती हुई, हांक देती हुई दोनों सेनाएं भिड़ गई। 5. तो तिणि वि एम चवन्ताई, उम्माहउ जणहो जणन्ताई। दिण-पच्छिम-पहरे विरिणग्गयाइँ ....। (27.15 प. च.) -तीनों इस प्रकार बातें करते हुए और लोगों में उन्माद पैदा करते हुए दिन के अन्तिम प्रहर में निकल पड़े । द्वितीया विभक्ति के प्रयोग 1. णासन्तु पदीसिउ पर-वलु राहव-पविखएहिं किउ कल यलु । (61.8 प. च.) -नष्ट होती हुई शत्रुसेना को देखकर राम की सेना द्वारा कोलाहल किया गया। 2. पेक्खेवि उत्थल्लन्तई छत्तई भिडिउ पसण्ण कित्ति सुर-साहणे । (17.3 प.च.) -उछलते हुए छत्रों को देखकर प्रसन्नकीति सुर-सेना से भिड़ गया। 3. रावण किण्ण णियहि गन्दन्तई सयाई । (57.2 प. च.) -रावण (तुम) मानन्द करते हुए स्वजनों को क्यों नहीं देखते हो ? तृतीया विभक्ति के प्रयोग 1. पुत्तेण जुज्झन्तरण सई भुय-वलेण महीयलु । (3.13 प.च.) जुझते हुए पुत्र के द्वारा अपने भुज-बल से धरती (प्राप्त की गई)। 2. चरन्तएहिँ हरिणेहि वि दोवउ मेल्लियउ । (19.5 प.च.) - चरते हुए हरिणों के द्वारा भी मुंह का कौर छोड़ दिया गया। 3. किङ्करहिं गवेसन्तेहिं वणे लक्खिउ लया-भवणे । (19.17 प. च.) -वन में खोजते हुए अनुचरों के द्वारा (वह) लतागृह में देखा गया। 4. पणमन्ते अक्खिय कुसल-वत्त हणुवन्ते । (50.1 प.च ) - हनुमान के द्वारा प्रणाम करते हुए कुशलवार्ता कही गई । 92 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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