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________________ मौनरहितभोजनमलोतमग-मैथुनादिसेवन प्राणातिपातमृषावादपरनिंदादयो ज्ञानावरणाश्रवस्य हेतवो विज्ञेयाः। ___नेत्रोत्पाटनपरस्त्री-मुखयोनि-अंगारादिदर्शन कुतीर्थमिथ्यात्वस्थापन पापकार्याचवलोकन दिय-विकारकरण धर्मिजनासहन दर्शनमात्सर्यांतरायजिनधर्मप्रत्यनीकत्व जिनधर्म -महोत्सवजिनचैत्यचैत्यालयनिर्ग थानवलोकन-दृष्टिगौरव दिवाशयनबहुनिदालस्यनास्तिकांगीकारसम्यग्दृष्टिज्ञानिज्ञान तपस्विसंदूषणकुतीर्थ-मिथ्यादृष्टि-प्रशंसा-यतिजन-जुगुप्सा हिंसानृत-पर-धनहरणादयो दर्शनावरणकर्मणां हेतवो भवति। मौन रहित भोजन करना, अध्ययन करते समय शरीर से मल (नासिका, कर्ण, नेत्र इत्यादि से) निकालना, मैथुन सेवन, हिंसादि कार्य करना, झूठ बोलना, दूसरों की निंदा करना ज्ञानावरण कर्म के आश्रव के कारण जानना चाहिए। आंखें फोड़ना, परस्त्री का मुख, योनि, श्रृंगारादि देखना, कुतीर्थ एवं मिथ्यात्वमत की स्थापना, पाप आदि कार्य करना, चक्षु इन्द्रिय में विकार करना, धर्मीजनों के प्रभाव को सहन नहीं कर पाना, दर्शनमात्सर्य, दर्शनअंतराय, जिन धर्म के विपरीत चलना, जिनधर्म के महोत्सव जिन चैत्य चैत्यलय और निर्ग्रन्थ साधुओं को नहीं देखना, दृष्टि का गर्व, दिन में सोना, बहुत निद्रा लेना, अति आलस्य करना, नास्तिकता को धारण करना, सम्यग्दृष्टि की श्रद्धा में, ज्ञानि के ज्ञान में, तपस्वी के चारित्र में दूषण लगाना, कुतीर्थ. एवं मिथ्यादृष्टि प्रशंसा, यति जनों के प्रति ग्लानि भाव, हिंसा करना, झूठ बोलना, दूसरों के धन का हरण करना इत्यादि दर्शनावरण कर्म के आश्रव के कारण हैं। (86) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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