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________________ उच्चगोत्राणां उत्कृष्टास्थितिबंधः दशसागरोपम-कोटिकोट्यः । नपुंसकवेदारतिशोकभयजुगुप्सानरकगति तिर्यगत्यैकेन्द्रियपंचेन्द्रियजात्यौदारिकर्व क्रियिक- तैजसकार्मण-शरीरहुंडकसंस्थानऔदारिकवै क्रियिकांगोपांग-असंप्राप्तास्पाटिकासंहननवर्णरसगंधस्पर्श नरकगतितिर्यग्गति-पायोग्यानुपूर्व्यागुरुलघूघातपरघातोच्छवासातपोद्योता-प्रशस्त विहायोगतित्रसस्थावरबादरपर्याप्ति-प्रत्येकशरीरा-स्थिराशुभ दुर्भगदुःस्वरानादेयायशःकीर्तिनिर्माणनीचैर्गोत्राणाम् उत्कृष्टा स्थितिः विंशतिःकोटि-कोटिसागरप्रमाणः। नारकदेवायुषोः परास्थितिः त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणितिर्यग्मनुष्यायुषोः परमास्थितिस्त्रीणिपल्योपमानि दीदियत्रीइन्दियचतुरिदियजातिवामन उत्कृष्ट स्थिति बंध दस कोड़ाकोड़ी सागर है। नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नरकगति, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, पंचेन्द्रि यजाति, औदारिक-वै क्रियिक-तैजस-कार्मण शरीर, हुण्डकसंस्थान, औदारिक-वैक्रियिक आंगोपांग, असंप्राप्तासृपाटिका संहनन, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, तिर्यंचगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, आतप, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, त्रस, स्थावर, वादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयशःकीर्ति, निर्माण और नीचगोत्र की उत्कृष्ट स्थिति 20 कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है। नरकायु एवं देवायु की उत्कृष्ट स्थिति 33 सागर है। तिर्यंचायु-मनुष्यायु की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियजाति, (60) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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