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________________ कर्मप्रकृतिः मिश्रगुणस्थाने सम्यग्मिथ्यादृष्टि बन्नाति। निद्रा-निद्रा प्रचला-प्रचला स्त्यानगृद्धिः चतुरनंतानुबंधि -कषायाः। स्त्रीवेदः तिर्यगायुः मनुष्यायुः देवायुः तिर्यग्गतिः न्यग्रोधपरिमंडलस्वातिवामनकुब्जकसंस्थानानि। वजनाराच- नाराचार्द्धनाराचकीलिकसंहननानि। तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूयं उद्योतः अप्रशस्तविहायोगतिः दुर्भगः दुस्वरः अनादेयःनीचैर्गोत्रं इमाः सप्तविंशति प्रकृतयो मिश्रगुणस्थाने अबंधका विज्ञेयाः। पूर्वोक्त मिश्रगुणस्थानप्रकृतिर्मनुष्यदेवायुस्तीर्थ करत्व सहिताः सप्तसप्ततिसंख्यकाः अविरतगुणस्थाने अविरत सम्यग् -दृष्टिर्बध्नाति। __पंचज्ञानावरणानि चारचक्षुरवधिके वलदर्शनावरणानि निद्रा प्रचला द्विधा वेदनीयं प्रत्याख्यानसंज्वलन क्रोधमानमाया मिश्र गुणस्थान में सम्यग्मिथ्यादृष्टि बंध करता है। निद्रा-निद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, अनंतानुबंधी चार कषाय, स्त्रीवेद, तिर्यंचायु, मनुष्यायु, देवायु, तिर्यंचगति, न्यग्रोधपरिमण्डल-स्वाति-वामन-कुब्जक संस्थान, वज्रनाराच-नाराच–अर्धनाराच-कीलक संहनन, तिर्यंचगति --प्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीचगोत्र इन 27 प्रकृतियों का मिश्र गुणस्थान में अबंध जानना चाहिए। पूर्वोक्त मिश्रगुणस्थान में बंधने वाली 74 प्रकृतियाँ तथा मनुष्यायु, देवायु एवं तीर्थंकर इन तीन प्रकृतियों सहित, अविरत सम्यग्दृष्टि के चतुर्थ गुणस्थान में 77 प्रकृतियों का बंध होता है। पांच ज्ञानावरण, चक्षु-अचक्षु-अवधि-केवलदर्शनावरण, निद्रा, प्रचला, दो वेदनीय, प्रत्याख्यान एवं संज्वलनक्रोध-मान-माया-लोभ, (47) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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