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यत् कर्मवशात् न्यग्रोधपरि- मंडलाकारं नाभेरुर्द्धपरमाणुबहूपेतं अधो हस्वं आयातवृत्तं शरीरस्य संस्थानं भवति तत् न्यग्रोध परिमंडलसस्थानं। येन कर्मोदयेन वाल्मीकाकारं शाल्मलिनिभं वा नाभेरधोऽवयव- विशालं ऊर्द्धसूक्ष्मं शरीरस्य संस्थानं भवति तत् स्वातिसंस्थान। यद् वशात् सर्वांगोपांग हस्वोपेतं शरीरस्य संस्थानं जायते तद् वामनसस्थानं। येन कर्मविपाकेन पृष्टप्रदेशे बहुपुद्गल- प्रचययुक्तं संस्थानं भवति तत् कुब्जकसंस्थानं। येन कर्मोदयेन नारकशरीराणां संांगोपांग हुंडसंस्थितिकरं वीभत्सं संस्थानमुत्पद्यते तत् हुड़कसंस्थाननाम।
का संस्थान होता है, वह समचतुरस्र संस्थान नाम कर्म है।
न्यग्रोध (बट) वृक्ष के समान नाभि के ऊपर शरीर में स्थूलत्व और नीचे के भाग में लघु प्रदेशों की रचना होना न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान है।
वल्मीक या शाल्मली वृक्ष के आकार के समान नाभि से नीचे विशाल और ऊपर सूक्ष्म या हीन जिस शरीर का आकार होता है, वह स्वातिशरीरसंस्थान है।
जिस कर्म के उदय से पीठ पर बहुत पुद्गलों का पिण्ड हो जाता है, वह कुब्जकसंस्थान नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से शरीर के सभी अंग उपांग छोटे होते हैं, उसे वामनसंस्थान कहते हैं।
जिस कर्म के उदय से सभी अंग और उपांग अनिचित आकार हुण्ड के समान एवं विषम (असुहावने) आकार वाले होते हैं, वह हुड़क संस्थान है।
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