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स्थावरनाम। सुभगनाम। दुर्भगनाम। सुस्वरनाम। दुस्वरनाम। शुभनाम। अशुभनाम। सूक्ष्मनाम। वादरनाम। पर्याप्तिनाम। अपर्याप्तिनाम। स्थिरनाम! अस्थिरनाम। आदेयनाम। अनादेय नाम। यशःकीर्तिनाम। अयशःकीर्तिनाम। तीर्थकरत्वनाम। त्रिनवतिप्रकारं नामकर्मति। उच्चैर्गोत्रं नीचैर्गोत्रं द्विधेति गोत्र।
___ लाभांतरायः दानांतरायः भोगांतरायः उपभोगांतरायः वीर्यातरायः पंचधेत्यंतरायः एवमष्टचत्वारिंशदधिकशतमुत्तर प्रकृतयो विज्ञेयाः।
अथ तासां कर्मप्रकृतिनां स्वभावं व्यावर्णयामि। अवग्रहेहादिशिदधिकत्रिशत्-प्रमान् मतिज्ञानभेदाना- वृणोतीति मतिज्ञानावरणं। यावंतो मतिज्ञानभेदास्तावंत आवरण भेदाः ज्ञातव्याः। ये केचन पहिलाविकलाबधिराबुद्धिहीनाश्चात्र भवंति ते मतिज्ञानावरणोदयनैव।
स्थावर नामकर्म, सुभग नामकर्म,दुर्भगनामकर्म, दुस्वरनामकर्म, शुभनामकर्म, अशुभनामकर्म, सूक्ष्मनामकर्म, वादर नामकर्म, पर्याप्त नामकर्म, अपर्याप्त नामकर्म, स्थिर नामकर्म, अस्थिर नामकर्म, आदेय नामकर्म, अनादेय नामकर्म, यशःकीर्ति, अयशः कीर्ति, तीर्थंकरनामकर्म ।
गोत्र कर्म दो प्रकार का है - उच्चगोत्र और नीचगोत्र ।
लाभांतराय, दानांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय और वीर्यांतराय इस प्रकार अंतराय कर्म पांच प्रकार का है।
इस प्रकार कर्मो की एक सौ अठतालीस प्रकृतियाँ जानना चाहिये। अब उन प्रकृतियों के स्वभाव का वर्णन करता हूँ।
अवग्रहादि 336 मतिज्ञान के भेदों को जो आवरण करता है उसे मति ज्ञानावरण जानना चाहिये । मतिज्ञान के जितने भेद होते है, उतने ही आवरण जानना चाहिये । । ग्रहिल, विकल, वधिर तथा बुद्धिहीन जो लोग यहाँ दृष्टिगोचर होते है। वे मति ज्ञानावरण कर्म के उदय से ही होते हैं।
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