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________________ प्रमत्तसंयत गुणस्थान में नरकायु एवं तिर्यंचायु के बिना शेष 146 प्रकृतियों का सत्त्व है। नरकायु, तिर्यंचायु इन दो प्रकृतियों का असत्त्व है। सत्त्व व्युच्छित्ति का अभाव है। अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में नरकायु, तिर्यंचायु के बिना शेष 146 प्रकृतियों का सत्त्व है। इन्हीं दो प्रकृतियों का असत्त्व है। अनंतानुबंधी चतुष्क, देवायु, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यग्प्रकृति इन आठ प्रकृतियों की सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। . अपूर्वकरण गुणस्थान में नरकायु, तिर्यंचायु, देवायु, अनंतानुबंधीचतुष्क, दर्शनमोहनीय की तीन इन 10 प्रकृतियों के बिना 138 प्रकृतियों का सत्त्व है। ऊपर कही गई 10 प्रकृतियों का ही असत्त्व। सत्त्व व्युच्छित्ति का अभाव है। __ अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथमभाग में (क्षपक क्षेणी वाले) के अपूर्वकरण गुणस्थान के समान 138 प्रकृतियों का सत्त्व है। अपूर्वकरण गुणस्थान के समान 10 प्रकृतियों का असत्त्व है। नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, विकलत्रय, स्त्यानगृद्धि, निद्रा-निद्रा, प्रचला–प्रचला, उद्योत, आतप, एकेन्द्रिय, साधारण, सूक्ष्म और स्थावर इन 16 प्रकृतियों की सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। अनिवृत्तिकरण के द्वितीय भाग में प्रथम भाग की 138 प्रकृतियों में से उपर्युक्त 16 प्रकृतियों के बिना 122 प्रकृतियों का सत्त्व पाया जाता है। अनिवृत्तिकरण के प्रथम भाग में असत्त्व योग्य 10 प्रकृतियों में उक्त नरकगति आदि 16 प्रकृतियों के मिलाने पर 26 प्रकृतियों का असत्त्व है। अप्रत्याख्यानचुतष्क एवं प्रत्याख्यानचतुष्क इन 8 प्रकृतियों की सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। अनिवृत्तिकरण के तृतीय भाग में अनंतानुबंधी-अप्रत्याख्यानावरण -प्रत्याख्यानक्रोध-मान-माया-लोभ, दर्शनमोहनीय की तीन, एकेन्द्रियादि चार जातियाँ, नरक-तिर्यंच-देवायु, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यंच (108) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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