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________________ योग्य 42 प्रकृतियों में से वज्रर्षभ नाराच संहनन आदि 29 प्रकृतियों के बिना शेषा 13 प्रकृतियों का उदय है। सयोग केवली गुणस्थान में अनुदय योग्य 80 प्रकृतियों में सयोगकेवली गुणस्थान की व्युच्छिन्न 29 प्रकृतियों को मिलाने पर 109 प्रकृतियों का अनुदय है। 2 वेदनीय, मनुष्यगति, मनुष्यायु, पंचेन्द्रिय जाति, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर और उच्च गोत्र इन 13 प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है। गुणस्थानों में उदय संबंधी नियम आहारक शरीर और आहारक आंगोपांग का उदय प्रमत्त गुणस्थान में ही होता है। तीर्थंकर प्रकृति का उदय सयोगी और अयोग केवली के ही हैं। मिश्र मोहनीय का उदय सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में ही है। सम्यक्त्व प्रकृति का उदय असंयतादि चार गुणस्थानवर्ती वेदक सम्यग्दृष्टि के ही हैं। आनुपूर्वी का उदय मिथ्यादृष्टि, सासादन और असंयत गुणस्थान में ही है। अन्यत्र इनके उदय का अभाव है। सासादन सम्यग्दृष्टि मरणकर नरकगति में नहीं जाता है इसी कारण उसके सासादन गुणस्थान में नरकगत्यानुपूर्वी का उदय नहीं है तथा शेष प्रकृतियों का उदय मिथ्यात्वादि गुणस्थानों में अपने-अपने उदय स्थान के अंत समयपर्यंत जानना। गुणस्थानों में उदय, अनुदय एवं उदय व्युच्छित्ति प्रकृतियों की संदृष्टि गुणस्थान उदय | अनुदय उदय व्युच्छित्ति मिथ्यात्व | 117 | 5 |10 (मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, स्थावर, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय.) सासादन | 164 (अनन्तानुबन्धीचतुष्क) 22 1 (सम्यग्मिथ्यात्व) असंयत |17 (अप्रत्याख्यानचतुष्क, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, देवायु, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, नरकायु, वैक्रियक शरीर, (102) मिश्र .18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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