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प्रचलाप्रचला इन 5 प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है।
___ अप्रमत्त गुणस्थान में प्रमत्त गुणस्थान में उदय योग्य 81 प्रकृतियों में से आहारक द्विक (आहारक शरीर, आहारक शरीरांगोपांग) स्त्यानगृद्धि, निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला इन 5 प्रकृतियों के बिना शेष 76 प्रकृतियों का उदय है। प्रमत्त गुणस्थान की अनुदय योग्य 41 प्रकृतियों में आहारक द्विक, स्त्यानगृद्धि, निद्रा-निद्रा, प्रचला–प्रचला, इन पांच प्रकृतियों को मिलाने पर 46 प्रकृतियों का अनुदय है। सम्यक्त्व, अर्धनाराच,कीलक एवं असंप्राप्तासृपाटिका संहनन इन चार प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है।
अपूर्वकरण गुणस्थान में अप्रमत्त गुणस्थान में उदय योग्य 76 प्रकृतियों में से सम्यक्त्व, अर्धनाराच, कीलक व संप्राप्तासृपाटिका संहनन इन 4 प्रकृतियों के बिना शेष 72 प्रकृतियों का उदय है। अप्रमत्त गुणस्थान की अनुदय योग्य 46 प्रकृतियों में सम्यक्त्व, अर्धनाराच, कीलक और असंप्राप्तासृपाटिका संहनन इन 4 प्रकृतियों को मिलाने पर 50 प्रकृतियों का अनुदय है। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा इन 6 प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है।
अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में अपूर्वकरण गुणस्थान की उदय योग्य 72 प्रकृतियों में से हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा इन 6 प्रकृतियों के बिना शेष 66 प्रकृतियों का उदय होता है। अपूर्वकरण गुणस्थान में अनुदय योग्य 50 प्रकृतियों में पूर्वोक्त हास्यादि 6 प्रकृतियों को मिलाने पर 56 प्रकृतियों का अनुदय है। स्त्री-पुरुष-नपुंसक वेद, संज्वलन क्रोध, मान और माया इन 6 प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है।
सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान में अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में उदय योग्य 66 प्रकृतियों में से तीन वेद, संज्वलन क्रोध, मान, माया इन 6 प्रकृतियों के बिना शेष 60 प्रकृतियों.का उदय है। अनिवृत्तिकरण गुणस्थान की अनुदय योग्य 56 प्रकृतियों में तीन वेद, संज्वलन क्रोध-मान-माया ये 6 प्रकृतियों मिलाने पर 62 प्रकृतियों का अनुदय,
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