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________________ ज्योवन गिर गमार पछइ पालइ शीयल घणां । ते कुहु कवण विचार विण अवसर जे वरसीयिए ।। कहा जाता है कि माता-पिता के आग्रह से ये चार वर्षों तक घर में रहे और 18 वें में प्रवेश करते ही वि.सं. 1463 (ई. सन् 1406) में समस्त सम्पत्ति का त्याग कर भट्टारक पद्मनन्दि के पास नेणवां चले गये। 34वें वर्ष में आचार्य पदवी धारण कर अपने प्रदेश में वापस आये और धर्मप्रचार करने लगे। इस समय ये नग्नावस्था में थे । आचार्य सकलकीर्ति ने बागड़ और गुजरात में पर्याप्त भ्रमण किया था और धर्मोपदेश देकर श्रावकों में धर्म भावना जागृत की थी। उन दिनों में उक्त प्रदेशों में दिगम्बर जैन मंदिरों की संख्या भी बहुत कम थी तथा साधुओं के न पहुंचने के कारण अनुयायियों में धार्मिक शिथिलता आ गयी थी । अतएव इन्होंनें गांव गांव में विहार कर लोगों के हृदय में स्वाध्याय और भगवद्भक्ति की रुचि उत्पन्न की। I बलात्कारगण इडर शाखा का आरंभ भट्टारक सकलकीर्ति से ही होता है । ये बहुत ही मेधावी, प्रभावक, ज्ञानी और चारित्रवान थे । बागड़ देश में जहां कहीं पहले कोई प्रभाव नहीं था, वि.सं. 1492 में गलियाकोट में भट्टारक गद्दी की स्थापना की तथा अपने आपको सरस्वतीगच्छ एवं बलात्कारगण से सम्बोधि ात किया। ये उत्कृष्ट तपस्वी और रत्नावली, सर्वतोभद्र, मुक्तावली आदि व्रतों का पालन करने में सजग थे 1 स्थितिकाल भट्टारक सकलकीर्ति द्वारा वि. सं. 1490 (ई. सन् 1433) वैशाख शुक्ला नवमी शनिवार को एक चौबीसी मूर्ति, विक्रम सम्बत् 1492 (ई. सन् 1435) वैशाख कृष्ण दशमी को पार्श्वनाथमूर्ति सं. 1494 (ई. सन् 1437 ) वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को आबू पर्वत पर एक मंदिर की प्रतिष्ठा करायी गयी। जिसमें तीन चौबीसी प्रतिमाएँ परिकर सहित स्थापित की गयीं थीं । वि.सं. 1497 ( ई. सन् 1440 मे) एक आदिनाथ स्वामी की मूर्ति तथा सागवाड़ा में आदिनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा करायी थी। इसी स्थान में आपने भट्टारक धर्मकीर्ति का पट्टाभिषेक भी किया था । भट्टारक सकलकीर्ति ने अपनी किसी भी रचना में समय का निर्देश नहीं किया है, तो भी मूर्तिलेख आदि साधनों के आधारपर से उनका निधन वि. सं. 1499 पौष मास में महसाना (गुजरात) में होना सिद्ध होता है। इस प्रकार उनकी आयु 56 वर्ष की आती है। (3) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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