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चन्द्रमा.घटता (है) और फिर बढ़ता है। बीती हुई ऋतु (फिर) आती है, (किन्तु) नदी के जल में (प्रवाह में ) गई हुई छोटी मछली की तरह यौवन नहीं लौटता है।
सर्व जीवलोक में आयु पहाड़ी नदी के प्रवाह की तरह दौड़ती है। (तथा) लोक में सुकुमारता भी पूर्वार्ध की छाया (की तरह) कम होती है।
लोक में घर, शय्या, आसन, भांड भी बर्फ के समूह की तरह अध्रुव होते हैं। (तथा) यश और कीर्ति भी संध्या के आकाश की लालिमा की तरह अनित्य (होते हैं)।
(जिस प्रकार) कुमार्ग गामी घोड़े लगाम द्वारा निश्चित रूप से वश में किए जाते हैं, उसी प्रकार) इन्द्रिय रूपी दुर्दम घोड़े दमनरूपी ज्ञान की लगाम से नियन्त्रित किए जाते हैं ।
जिस प्रकार व्यक्ति के रोगों में कुशल वैद्य चिकित्सा करता है । ( उसी प्रकार ) ध्यान (रूपी) वैद्य कषाय रूपी रोगों में कुशल चिकित्सक होता है।
जैसे भूख में अन्न (कारगार) होता है (वैसे ही) विषयरूपी भूख में ध्यान (रूपी) : ( अन्न उपयोगी होता है)। जैसे प्यास में पानी (उपयोगी होता है) (उसी तरह) विषयरूपी प्यास में ध्यान (रूपी) जल (उपयोगी होता है ) ।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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