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________________ 21. जैसे (कवच से) ढका हुआ योद्धा संग्राम के मोर्चे पर (रहता है), (वैसे ही) वे . महावीर वहाँ (लाढ़ देश में) कठोर (यातनाओं) को सहते हए (आत्म-नियन्त्रित रहे) (और) (वे) भगवान (महावीर) अस्थिरता-रहित (बिना डिगे) विहार करते थे। 22. और दो मास से अधिक अथवा छ: मास तक भी (वे) (कुछ) नहीं पीते थे। रात में और दिन में (वे) (सदैव) राग-द्वेष-रहित (समतायुक्त) (रहे)। कभीकभी (उन्होंने) बासी (तन्द्रालु) भोजन (भी) खाया। 23. कभी (वे) दो दिन के उपवास के बाद में, तीन दिन के उपवास के बाद में, अथवा चार दिन के उपवास के बाद में भोजन करते थे। कभी (वे) पाँच दिन के उपवास के बाद में भोजन करते थे। (वे) समाधि को देखते हुए निष्काम (थे)। 24. वे महावीर (आत्मस्वरूप को) जानकर स्वयं भी बिल्कुल पाप नहीं करते थे (तथा) दूसरों से भी पाप नहीं करवाते थे (और) किए जाते हुए (पाप का) अनुमोदन भी नहीं करते थे। . 25. गाँव या नगर में प्रवेश करके भगवान (महावीर) (वहाँ) दूसरे के लिए (गृहस्थ के लिए) बने हुए आहार की (ही) भिक्षा ग्रहण करते थे। (इस तरह) सुविशुद्ध (आहार की) भिक्षा ग्रहण करके (वे) संयत (समतायुक्त) योगत्व से (उसको) उपयोग में लाते थे। 26. (महावीर) कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ)-रहित (थे), (उनके द्वारा) लोलुपता नष्ट कर दी गई (थी), (वे) शब्दों (तथा) रूपों में अनासक्त (थे) और ध्यान करते थे। (जब वे) असर्वज्ञ (थे), (तब).भी (उन्होंने) साहस के साथ (संयम पालन) करते हुए एक बार भी प्रमाद नहीं किया। . 27. . आत्म-शुद्धि के द्वारा संयत प्रवृत्ति को स्वयं ही प्राप्त करके भगवान शान्त (और) सरल (बने)। (वे) जीवनपर्यन्त समतायुक्त रहे। ... प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 37 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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