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________________ 1 हीलणमप्पियवयणं [(हीलणं)+ (अप्पियवयणं)] हीलणं (हीलण) 2/1 [(अप्पिय) वि-(वयण) 1/1] (समास) क्रिविअ 3/1 = तिरस्कार को = अप्रिय वचन (है) = संक्षेप से समासेण 11. जलचन्दणस- [(जल)-(चंदन)-(ससि)-(मुत्ता)सिमुत्ताचन्दमणी (चन्दमणि) 1/2] तह अव्यय (णर) 4/1 णिव्वाणं (णिव्वाण) 2/1 णरस्स ण अव्यय = जल, चंदन, चन्द्रमा, मोती एवं चन्द्रकान्तमणी = उस प्रकार = मनुष्य के लिए = तृप्ति/सुख = नहीं = करते हैं = करता है = जैसी = अर्थयुक्त = हितकारी, मधुर एवं परिमित वचन करन्ति (कर) व 3/2 सक कुणइ (कर) व 3/1 सक जह अव्यय अत्थज्जुयं . [(अत्थ)-(ज्जयु) 1/1 वि] हिदमधुरमिदवयणं [(हिद) वि- (मधुर) वि (मिद)-(वयण) 1/1] 12, . . .1.91.11 1.1111:11 सच्चम्मि तवो = सत्य में = तप (सच्च) 7/1 . (तव) 1/1 (सच्च) 7/1 (संजम) 1/1 = सत्य में सच्चम्मि संजमो = संयम अव्यय वसे . (वस) व 3/1 अक (सय) 1/2 वि = तथा = रहता है (रहते हैं) = सैकड़ों = ही अव्यय गुणा गुण (गुण) 1/2 (सच्च) 1/1 (णिबंधण) 1/1 सच्चं णिबंधणं सत्य . = आधार प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग-2 161 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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