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________________ मंति काउरिसा सा इर लीला ·15 काअ-धारणं सुलह-रअणाण 19. किविणाण अण्ण दाण-गुणे - विसए अहिसलाहमाणाण णिअ-चाए उच्छाहो ण णाम कह वा ण लज्जा वि 20. सइ जादर चिंताअड्ढिअं (रम) व 3 / 2 अक ( काउरिस) 1/2 (ता) 1 / 1 स अव्यय (लीला) 1 / 1 अव्यय [ ( काअ ) - (धारण) 1 / 1] [(yme) fa-(13101)' 6/2] Jain Education International (fanfaur) 6/2 [ ( अण्ण) वि - (विसअ ) 7/1] [(दाण) - (गुण) 2/2] (अहिसलाह) वकृ 6/2 [(fo137) fa-(137) 7/1] ( उच्छाह) 1 / 1 अव्यय अव्यय अव्यय अव्यय अव्यय (लज्जा) 1 / 1 अव्यय अव्यय [(जाढर) वि- (चिंता) - (अड्ढिअ) 1/1 fa] अव्यय प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 = प्रसन्न होते हैं - दुष्ट पुरुष For Personal & Private Use Only = = वह = निश्चय ही = स्वेच्छाचारिता = = काँच ग्रहण = सुलभ होने पर, रत्नों के कि = कृपण के = दूसरों के विषय में = दान-गुण को : सराहते हुए = = = निज त्याग में = उत्साह नहीं = आश्चर्य = कैसे = और = नहीं = लज्जा = भी कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) = सदा पेट से सम्बन्धित चिन्ता से = खिचा हुआ = तथा 113 www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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