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24. कुमार सिंहों के द्वारा जो देश बहुत दिनों में पार किया (था) वह
भरत के द्वारा आसानी से छ: दिनों में पाया गया (पार किया गया)।
25.
चक्षु से प्रत्यक्ष होने पर वह कैकेयी पुत्र घोड़े को छोड़कर राम को चरणों में प्रणाम करके मूर्छा को सम्प्राप्त हुआ।
26.
बोध दिया गया भरत राम के द्वारा स्नेहपूर्वक आलिंगन किया गया (तथा) सीता और लक्ष्मण के द्वारा क्रम से अत्यन्त (खूब सारी) बातचीत की गई।
27. झुके हुए शरीरवाला भरत सिर पर अंजलि करके आज्ञा गुण से समृद्ध
राम को कहता है- हे सुपुरुष! (आप) सकल राज्य को (पालन) करें।
28.
मैं छत्र धारण करूँगा (करता हूँ) और शत्रुघ्न चामरधर (चंवर करने वाला) होगा (होता है) लक्ष्मण मंत्री (होगा)। आपके लिए अन्य आचरणीय (चीज) क्या है?
29.
जबकि ऐसी बातचीत हो रही थी (होती है) उसी समय रथ से शीघ्रता करती हुई समान उद्देश्य को प्राप्त हुई कैकेयी देवी (आ पहुँची)।
30. रथ से नीचे उतरकर रोती हुई सीतासहित राम को और लक्ष्मण को
आलिंगन कर क्रम से कहती है।
31.
तब कैकेयी ने कहा- हे पुत्र! (हम) अयोध्या नगरी चलते हैं। (तुम) अपना राज्य करो और तुम्हारे द्वारा भरत भी सिखाया जाना चाहिए (शिक्षा दी जानी चाहिए)।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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