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समीपवर्ती होने के कारण ( भी ) इस क्षणभंगुर देह से यहाँ क्या (प्रयोजन ) ( है ) ( यदि ऐसा है तो) बाँधवों के दूरस्थित होने पर (तो) ( इससे ) अधिक क्या अवस्था होगी (होती है ) ? ( अर्थात् बाँधवों से भी क्या प्रयोजन)
फिर यहाँ अकेला ही यह मोहान्ध जीव दुःख एवं पाप से भरे हुए भवरूपी जंगल में जहाँ-तहाँ घूमता है।
भरत को इस प्रकार जागा हुआ जानकर सब कलाओं में कुशल, (व) शोक से आच्छादित हृदय से देवी कैकेयी सोचने लगी।
न ही मेरे पति और न ही पुत्र ( है ) । दोनों ही दीक्षा के अभिलाषी हुए हैं। ( इस कारण ) उस उपाय को सोचती हूँ जिससे पुत्र को तो लौटा लूँ।
तब विनयसहित वह महादेवी कैकेयी राजा को कहती है मुझे वह वर दो जो (वर) सुभटों के समक्ष कहा गया था ।
तब राजा कहता है है प्रिये ! हे सुन्दरी ! दीक्षा को छोड़कर जो कहोगी वह आज तुम्हारे लिए सब दूँगा ।
इस वचन को सुनकर रोती हुई कैकेयी पति को कहती है, आपके द्वारा वैराग्य रूपी तलवार से स्नेह का दृढ़ बन्धन निश्चय ही काट डाला गया है।
सभी जिनवरों द्वारा इस दुर्धर चर्या का उपदेश दिया गया। आज तत्काल ही संयम में बुद्धि कैसे उत्पन्न हुई?
हे स्वामी! सुरपति के समान भोगों में आपका शरीर पाला हुआ है, (आप) अत्यन्त, तीव्र, कठोर और कर्कश परीषहों को जीतने के लिए कैसे समर्थ होओगे ?
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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