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14.
जीव एक शरीर को छोड़ता है अन्य (शरीर) को ग्रहण करता है। (इस प्रकार वह) पुन:-पुन: अनेक बार नये-नये अन्य-अन्य (शरीरों) को ग्रहण करता है छोड़ता है।
15. बहुत पुण्यशाली के भी सभी वस्तुओं व इन्द्रिय-विषयों का संयोग __ पूर्णतया नहीं होता है। किसी का भी (उस प्रकार का) पुण्य नहीं है जिसके द्वारा (व्यक्ति) सभी इच्छित (वस्तु समूह) प्राप्त करता है।
16.
धनवान
धनवान भी निर्धन हो जाता है और उसी तरह धनहीन धनवान हो जाता है। राजा भी सेवक हो जाता है और सेवक भी राजा हो जाता है।
17. शारीरिक दुःख से मानसिक दुःख बहुत बड़ा होता है। क्योंकि मान
सिक दु:ख से युक्त (व्यक्ति) के लिए विषय भी दु:खदायक होते हैं।
18. इस प्रकार विचार करते हुए (व्यक्ति) को (ज्ञान होता है) (कि)
(इस) अत्यन्त असार संसार में घोर दुःख के सागर में क्या निश्चय से कहीं भी सुख है?
19.
जीव अकेला उत्पन्न होता है। अकेला गर्भ में देह को धारण करता है। अकेला (ही) बालक और जवान (होता है)। (और) अकेला (ही) निर्बलता से ग्रसित बूढ़ा (होता है)।
20. .. अकेला रोगी (होता है), (अकेला) शोकपूर्ण (होता है)। अकेला
(ही) मानसिक दुःख में तपता है, अकेला (ही) मरता है (और) बेचारा अकेला (ही) नरक के दुःख को भी सहता है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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