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पाठ - 6 कार्तिकेयानुप्रेक्षा
जन्म मरण के साथ संलग्न है, यौवन बुढ़ापे के साथ (सम्बद्ध) है, लक्ष्मी विनाश सहित होती है, इस प्रकार सबको विनाशवान जानो।
परिवार, सगे-सम्बन्धी, पुत्र, स्त्री, अच्छे मित्र, शरीर की सुन्दरता, घर, गायों का समूह वगैरह सभी नये मेघ-समूह के समान अस्थिर (हैं)।
इन्द्रियों के विषय, अच्छे नौकरों का समूह तथा घोड़े, हाथी, उत्तम रथ, वगैरह सभी इन्द्रधनुष और बिजली की तरह चंचल (हैं), दिखाई दिये और नष्ट हुए।
4.
जिस तरह मार्ग में पथिकजनों का संयोग क्षणभर के लिए होता है उसी तरह ही बन्धुजनों का संयोग अस्थिर होता है।
5.
सुगन्धित द्रव्यों से स्नान द्वारा (तथा) अनेक प्रकार के भोजन द्वारा अत्यधिक स्नेहपूर्वक लालन-पालन किया गया शरीर भी जल से भरे हुए कच्चे घड़े की तरह क्षणमात्र में ही नष्ट हो जाता है।
6.
वह लक्ष्मी जो जल तरंगों के समान चंचल है, (वह) दो-तीन दिन ही ठहरती है (अतः) (उचित रूप से) भोगी जानी चाहिए (और) उत्तम दया से दान में दी जानी चाहिए।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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